________________
तैयार करेगा । पुण्यानुबन्धी पुण्यशाली व्यक्ति आनन्द से आनन्द में और सुख से सुख में जीवन की यात्रा करता है और एक दिन मोक्ष के द्वार पर पहुँच जाता है ।
किसी
पुण्य - शाली व्यक्ति आनन्द से आनन्द में और सुख से
सुख में, जीवन की यात्रा करता है,
केकी
पापानुबन्धी पुण्य की बात इससे विपरीत
है । जब तक धन नहीं आया, तब तक मनुष्य विचार करता है कि धन आए तो यह कर लूँ वह कर लूँ, और ज्यों ही धन आता है कि उसके वे विचार न जाने कहाँ गायब हो जाते हैं । आया हुआ धन उसके सामने अन्धकार का विस्तार कर देता है, उसके विचारों पर अन्धकार की कालिख पोत देता है, जब दान देने का प्रसंग आता है, तब दिल में दर्द होता है और वह सिकुड़ने लगता है । देने से पहले भी और बाद में भी पछताता है । कभी शंका से या लाज से मुट्ठी ढ़ीली करनी भी पड़े, तो उसे उस समय ऐसा अनुभव होता है, जैसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो । यह तो संसार है, मुट्ठी ढ़ीली करनी ही पड़ती है, किन्तु जब उसे ढ़ीली करनी पड़ती है, तब पहले भी और बाद में भी वह रोता है और जब लेखा देखता है, तब भी रोता है । जिस धन से मनुष्य की ऐसी स्थिति होती है, समझना चाहिए, वह धन पापानुबन्धी पुण्य से मिला है । पुण्यानुबन्धी पुण्य और पापनुबन्धी पुण्य के यह लक्षण आपके सामने हैं । इनके आधार पर आप सोच सकते हैं कि आपने जो धन पाया है, वह पुण्यानुबन्धी पुण्य से पाया है अथवा पापानुबन्धी पुण्य से प्राप्त किया है I
मैं समझता हूँ, जैनदर्शन का प्रत्येक विद्यार्थी मम्मण सेठ से परिचित होगा । फिर भी उसकी कहानी संक्षेप में बतलाए देता हूँ, जो बड़ी ही विचित्र है
राजगृही के मम्मण सेठ के पास 99 करोड़ का धन था । इतना
132