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________________ परिग्रह क्या है ? अपरिग्रह क्या है और अपरिग्रह-व्रत की साधना किस प्रकार की जा सकती है, इस विषय में काफी विचार आपके सामने रखे जा चुके हैं । आज भी इसी सिलसिले में कुछ बातें और कहनी हैं। बात यह है कि मनुष्य जब तक गृहस्थी के रूप में रहता है, दुनियादारी उसके पीछे है । परिवार, समाज तथा देश के साथ उसका सम्बन्ध बना हुआ है । इसलिए उसे कुछ न कुछ संग्रह करना पड़ता है । इस रूप में संग्रह किए बिना और परिग्रह रखे बिना वह अपना जीवन ठीक तरह चला नहीं सकता । भिक्षु और गृहस्थ का जीवन, अन्दर में तो एक ही रास्ते पर चलता है, किन्तु कदम कुछ आगे-पीछे अवश्य होते हैं । इस रूप में साधु के कदम तेज और गृहस्थ के कदम मंद माने गए हैं । किन्तु मार्ग दोनों का एक ही है। कुछ लोग कहते हैं कि साधु का मार्ग अलग है और गृहस्थ का मार्ग अलग है, मगर वास्तव में बात ऐसी नहीं है। सम्भव है, यह बात सुनकर आपको आश्चर्य हो, आपके मन में संकल्प-विकल्प उत्पन्न हों और आप सोचने लगें कि हम तो दोनों के मार्ग अलग-अलग सुनते आ रहे हैं ! फिर दोनों का मार्ग किस प्रकार एक हो सकता है ? जब आप ऐसा विचार करने लगें तब यह भी विचार करें कि 123
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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