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जब तक जीवन है, जीवन के मैदान में दौड़ना पड़ता है, तैयारी करनी पड़ती है, संघर्ष करने पड़ते हैं। इस बात की सावधानी रखनी चाहिए कि उस दौड़ और संघर्ष में से विवेक न निकल जाए, न्याय न निकल जाए और विचार न निकल जाए । जीवन का संघर्ष अज्ञान के
अन्धकार में न किया जाए । गृहस्थ को यह न भूल जाना चाहिए कि मैंने किस तरीके से पैसा पैदा किया है ? मेरे पास अन्याय और अत्याचार का तो कोई पैसा नहीं आ रहा है !
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