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________________ ब्रेक लगा दो और जीवन की गाड़ी जो अमर्यादित रूप में चल रही है, दूसरों को कुचलती हुई चल रही है, उसे रोक दो या मर्यादित रूप में चलने दो । और जब उसे मर्यादित करो, तो ऐसा मत करो कि पहले तो किसी को घायल करो और फिर उसकी मरहम पट्टी करो । यह जीवन का आदर्श नहीं है । किसी पहले तो किसी को घायल करो और फिर उसकी मरहम पट्टी करो - यह जीवन का आदर्श नहीं है। किसी सुनने में आया कि पुराने जमाने में मिमाई - मानव रक्त से बनने वाली एक औषधी विशेष ( मरहम ) के लिए इस प्रकार की प्रक्रिया अपनाई जाती थी, कुछ लोग किसी व्यक्ति को पकड़ कर उल्टा लटका देते थे और उसके सिर में घाव कर देते थे । उसके सिर से खून की एक-एक बूँद टपका करती थी और नीचे रखी हुई कढ़ाई में गिरा करती थी । इस प्रकार एक-एक बूँद खून निकाला जाता था और खून निकाल लेने के बाद उसे छोड़ दिया जाता था मरने नहीं दिया जाता था । उसके बाद उसे फिर अच्छा खाना खिलाया जाता और जब फिर खून तैयार हो जाता, तब फिर उसी प्रकार लटका कर खून निकाला जाता था । 106 उपर्युक्त उदाहरण का तात्पर्य यह है कि पहले किसी पर घाव करना और फिर मरहमपट्टी करना, साधना का कोई महत्वपूर्ण अंग नहीं है । छीना-झपटी करो, ठगाई करो और फिर वाह-वाही पाने के लिए दान करो और दान देकर अहंकार करो और अहंकार से अपने आपको कलुषित करो। इसकी अपेक्षा अपरिग्रह व्रत को ले लो, त्याग कर दो, छीना-झपटी बन्द कर दो, यही तरीका श्रेष्ठ है । दान से त्याग सदा श्रेष्ठ रहा है ।
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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