________________
इस प्रकार कल्पनाओं पर कल्पनाएँ करके आपने सामान का ढेर कर लिया और यह समझे कि यह सब हमारी आवश्यकताएँ हैं । फिर आप वह सब सामान लाद कर चले तो क्या आप सुखपूर्वक यात्रा कर सकेंगे ? आपके कदम हल्के पड़ेंगे या भारी ? आपके कदम भारी होंगे, और थोड़ी देर में हांफने लगेंगे । कदम-कदम पर बैठने का प्रयत्न करेंगे और पसीने से तर हो जाएँगे । सम्भव है तब, आप किसी दूसरे पर अपना बोझ लादने का प्रयत्न करें ।।
___ इसके विपरित दूसरा आदमी चलता है और केवल अपनी आवश्यकता की ही चीजें लेकर चलता है, किन्तु आवश्यकताओं की कल्पना नहीं करता । सहज रूप में जो आवश्यकताएँ हैं, उन पर तो वह विचार करता है, उनके साधन भी जुटा कर चलता है । पर कल्पना से आवश्यकताएँ उत्पन्न करके बोझा नहीं ढ़ोता है । तो उसके कदम हल्के पड़ेंगे, वह सुखपूर्वक यात्रा कर सकेगा और आराम से अपनी मंजिल को पा लेगा।
जो बात इस यात्रा के लिए है, वही जीवन-यात्रा के लिए भी है। संसार में आए हैं तो बैठ नहीं गए हैं
और जब से जीवन ग्रहण किया है, तभी से | जीवन गतिशील है। किन्तु प्रश्न यह है कि
जो जीवन की जब वह बचपन से जवानी में चला तो |
आवश्यकताएँ नहीं इच्छाओं का अधिक बोझ लाद कर चला या
हैं, जो जबरदस्ती हल्का वजन लेकर चला ? और इसी प्रश्न
ऊपर से लादी गई में से अपरिग्रह-व्रत निकल कर आता है । |
हैं, वह सब जीवन
का भार है। जो जीवन की आवश्यकताएँ नहीं हैं, जो जबरदस्ती ऊपर से लादी गई हैं, वह
98