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________________ सत्य दर्शन/६३ जीवन की साधना सत्य : आपको यह बात बड़ी अटपटी मालूम्म होती होगी कि आखिर सत्य, सत्य के ही लिए कैसे ? अहिंसा का आचरण अहिंसा के लिए ही क्यों ? इनका कुछ उद्देश्य तो होना ही चाहिए। मगर मैं समझता हूँ कि सत्य से बढ़कर और क्या उद्देश्य हो सकता है ? और अहिंसा से बढ़कर अहिंसा का और क्या उद्देश्य संभव हो सकता है ? जीवन का उद्देश्य पवित्रता है और पवित्रता क्या है ? सत्य अपने-आप में पवित्र हैं और जब वह पवित्र है, तो उसका अर्थ होता है-पवित्रता, पवित्रता के लिए, सत्य, सत्य के लिए और अहिंसा, अहिंसा के लिए। आत्मा के जितने भी निज गुण हैं, उन सब का एक गुण है। प्रत्येक गुण के द्वारा आत्मा में बैठे हुए एक-एक विकार का अन्त होता है, अर्थात् असत्य की जगह अपने-आप में सत्य का आ जाना और क्रोध से क्षमा की ओर आना । यह बाहर से हटकर अपनी ओर आना है। अहंकार से हटकर नम्र बनना भी निज गुण में आ जाना है और लोभ-लालच से बचकर सन्तोष प्राप्त करना भी निज गुण में आ जाना है। भूला हुआ यात्री रात-भर ठोकरें खाता है, उसे गली का मोड़ नहीं मिलता है और बाहर भटकता है। परन्तु जब कभी किसी के द्वारा घर का रास्ता मिलता है और वह घर में आ जाता है। वह घर से बाहर जो चल रहा था, सो भटकता था और ज्यों ही घर की ओर मुड़ा कि भटकना नहीं रहा, वह घर की ओर आना कहलाया। इसी प्रकार जब हम क्रोध, अभिमान, माया, लोभ, वासना और विकारों में रहते हैं, तो इसका अर्थ यह है कि आत्मा अपने घर से बाहर भटक रही है ; अर्थात् अपने निज गुणस्वरूप से बाहर भटक रही है और जब क्रोध-रूप दुर्गुण को छोड़ देती है, तो घर में लौट आती है ; अर्थात् अपने स्वरूप में आ जाती है। अहिंसा का आदर्श वया है ? आप कहते हैं-अहिंसा मोक्ष के लिए है, परन्तु मोक्ष क्या है ? मोक्ष का अर्थ है-समस्त विकारों के बन्धनों का टूट जाना और ज्यों-ज्यों बन्धन टूटते जाते हैं, मोक्ष प्राप्त होता जाता है। आत्मा का शुद्ध स्वरूप : आप सोचते होंगे कि जब सम्पूर्ण रूप से कर्मों के बन्धन टूट जाते हैं तब मोक्ष कहलाता है। यह ठीक है और मोटे तौर पर ऐसा ही माना जाता है, किन्तु चौथे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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