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________________ ६० / सत्य दर्शन सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि का निर्णय करने के लिए यही मुख्य दृष्टि रखनी चाहिए । यही बात आराधक और विराधक के विषय में भी समझनी चाहिए। एक आचार्य हैं, जिन्होंने उत्तराध्ययन सूत्र पर कुछ लिखा है। उन्होंने श्रावक की भूमिक को भी बाल-तप के रूप में प्रकाशित कर दिया है। उसको पढ़ा भी जाता है और पढ़ने के बाद कितनों को ही भ्रान्तियाँ जागती हैं । वह महान् आचार्य हैं। उन्होंने जो लिख दिया है, उसके लिए क्या हम यह कहें कि उत्सूत्र-प्ररूपणा कर दी है ? अथवा उनमें मिथ्यादृष्टिपन आ गया? सच तो यह है कि उनकी बुद्धि ने जहाँ तक काप किया, वहाँ तक चले। अगर वे सत्य को समक्ष रखकर ही चले, तो कैसे कहा जा सकता है कि वे मिथ्यादृष्टि हो गए? हाँ, ऐसी स्थिति में आवश्यक यही है कि जब भी कोई सच्ची सूचना या निर्णय दे, तो उसे स्वीकार करने में हिचक न हो। जो सहज भाव से अपनी भूल को स्वीकार करने को तैयार नहीं है, जो भूल को भूल समझ कर भी सोचता है-लिख तो दिया, अब इसे कैसे बदलूँ? बदलूँगा तो मेरी ख्याति में धब्बा लग जाएगा, लोग मेरा उपहास करेंगे, और इस प्रकार सत्य के सामने चमकने पर भी जो उसका तिरस्कार करता है, समझना चाहिए कि वहाँ दाल में काला है। उसकी स्थिति ठीक नहीं है। पहले जो आगमोद्धार हुआ है, उसमें कई भूलें आई हैं । तो क्या हम आगमोद्धार करने वालों को उत्सूत्र-प्ररूपक अथवा मिथ्यादृष्टि कहें ? नहीं। ऐसा नहीं कहा जा सकता । सत्य ही जिसका लक्ष्य है, उससे अगर गलत प्ररूपणा हो जाती है, तब भी वह सम्यग्दृष्टि है। इसके विपरीत, अगर किसी ने बिल्कुल सही लिखा है और छोटी-सी भी भूल नहीं की है, किन्तु उसकी वृत्ति पवित्र नहीं है, उसके पीछे अर्थोपार्जन की ही भावना है, तो हम कहेंगे कि उसने सत्य नहीं लिखा है, क्योंकि उसके पीछे सत्य की दृष्टि नहीं अभिप्राय यह है कि कलम से लिखना, मुँह से बोलना और बातों को उसी रूप में कह देना ही सत्य नहीं है, किन्तु उसके पीछे सत्य के प्रति अनुराग, भावना, प्रेरणा और चिन्तन भी चाहिए । जब तक यह न होगा, सत्य का निर्णय नहीं होगा और असत्य के दलदल में से निकलना संभव न होगा। आचार्य अकलक ने कहा हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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