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________________ १०/ सत्य दर्शन इस रूप में हम देखते हैं कि ईश्वर के पास जाने में, ईश्वरत्व की उपलब्धि करने में न रूप, न धन और न परिवार का ही बल काम आता है, और न बुद्धि का बल ही कारगर साबित होता है । द्रौपदी की बुद्धि का चातुर्य भी क्या काम आया ? आखिरकार, हम देखते हैं कि उसके चीर को बढ़ाने के लिए देवता आ गए। मगर हमें यह जानना होगा कि देवताओं में यह प्रेरणा जगाने वाला, उन्हें खींच लाने वाला कौन था? इस प्रश्न का उत्तर है, सत्य। सत्य की दैवी शक्ति से ही देवता खिंचे चले आए। दुनिया भर के औंधे-सीधे काम हो रहे हैं। देवता कब आते हैं ? मगर द्रौपदी पर संकट पड़ा, तो देवता आ गए। सीता के काम पड़ा तो भी देवता आ पहुँचे। सीता के सामने अग्नि का कुण्ड धधक रहा था । उसमें प्रवेश कराने के लिए उसके पति ही आगे आए, जिन पर सीता की रक्षा का उत्तरदायित्व था। राम कहते हैं - "सत्य का जो कुछ भी प्रकाश तुम्हें मिला है, उसकी परीक्षा दो।' ऐसे विकट संकट के अवसर पर सीता का सत्य ही काम आता है। इन घटनाओं के प्रकाश में हमें देखते हैं कि सत्य का बल कितना महान है। भारत के दर्शनकारों और चिन्तकों ने भी कहा है कि सारे संसार के बल एक तरफ हैं और सत्य का बल एक तरफ है । संसार की जितनी भी ताकतें हैं, वे कुछ दूर तक तो साथ देती हैं और उससे आगे जवाब दे जाती हैं। उस समय सत्य का ही बल हमारा आश्रय बनता है, और वही एकमात्र काम आता है। ___ जब मनुष्य मृत्यु की आखिरी घड़ियों में पहुँच जाता है, तब उसे न धन बचा पाता है, न ऊँचा पद तथा परिवार ही। वह रोता रहता है और ये सब के सब व्यर्थ सिद्ध हो जाते हैं। किन्तु कोई-कोई महान् आत्मा उस समय भी मुस्कराता हुआ जाता है, रोता नहीं जाता है। अपितु एक विलक्षण स्फूर्ति के साथ संसार से विदा होता है तो बताओ उसे कौन रोशनी देता है ? संसार के सारे सम्बन्ध टूट रहे हैं, एक कौड़ी भी साथ नहीं जा रही है और शरीर की हड्डी का एक टुकड़ा भी साथ नहीं जा रहा है, बुद्धि-बल भी वहीं समाप्त हो जाता है, फिर भी वह संसार से हँसता हुआ विदा होता है। हाँ, सत्य का अलौकिक प्रकाश ही उसे यह बल प्रदान करता है। बहुत से विचारकों से बातें करने का अवसर आया है। कम्युनिस्टों से भी बातें की हैं और मैंने उनसे पूछा, कि संसार-भर की समस्याओं का हल आखिरकार किसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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