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८८ : पीयूष घट
जिसकी आत्मा निर्मल है, वह पूज्य है, आदरणीय हैं । साधना की भूमि पर देह की पूजा नहीं, गुणों की पूजा की जाती है।' ___ लघु साधक अतिमुक्त अब एकाग्र और एकनिष्ठ होकर स्थविरों के पास विनय और भक्ति से ग्यारह अंगों का अध्ययन करने लगा। संयम और तप की कठोर साधना से उसका कमलसा कोमल देह कुम्हला गया । गुलाबी आभा तेज और ओज में परिणत हो गई थी। गुण संवत्सर की लम्बी साधना से देह क्षीण होने लगा था। फिर भी वह लघ पर महान् साधक मेव, तपोमार्ग पर बढ़ता ही रहा। अन्त में विपुलगिरि पर संलेखना करके अजर, अमर और शाश्वत हो गया ! अतिमुक्त का जीवन एक मधुर काव्य बन गया है !!
-अन्तकृ०, वर्ग ६, अ० १५/.
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