SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उसको नाव तिर रही थी! सुन्दर भोर का सुनहला सूर्य पोलासपुर के राज-प्रासादों पर अपनी कोमल, केशरी किरणें बिखेर रहा था। खगों का मधुर कलरव महलों में मादकता भर रहा था। विजय राजा की रानी श्रीदेवी अपनी दुलार भरी बोली बोल रही थी : "वत्स, अतिमुक्त ! उठो, जागो। सूर्य की गुलाबी आभा से पोलासपुर को कैसी सुषमा हो गई है ? लो उठो, देखो, देर मत करो-लाल मेरे।" जीवन का माधुर्य कहाँ है ? जीवन का सौन्दर्य कहाँ है ? एक ही उत्तर है, एक ही समाधान है-शैशव में ! बचपन में !! कितना कोमल, कितना मदु, और कितना मधुर है-यह शैशव काल ! न यहाँ छल है, न कपट है, न माया है, और न किसी प्रकार का दुराव छुपाव.ही है। सीधी-सरल भाषा में कोमल भावों की अभिव्यक्ति मानो, मुख कमल से सुरभित पराग झर रहा हो। अतियुक्त राजकुमार है। सुरीली आवाज, मीठा कंठमानो कोयल कूक रही है। नगर के बच्चों में हिल-मिलकर खेल रहा है। मुख की गुलाबी आभा, सुन्दर वसन और चमकते-दमकते आभूषण शालीनता के प्रतीक हैं । परन्तु मन में न भेद है, न खेद है । वह खेल रहा है, क्योंकि खेल उसे प्यारा है। बच्चों को खेल में अनन्त आनन्द आता है। न प्यास को परवाह, त भूख की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003423
Book TitlePiyush Ghat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy