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________________ संन्यासी का द्वन्द : ८१ स्वस्थ्य हो जाने पर वह खुलकर अपने विचारों का प्रचार करने लगा। प्रियदर्शना ने भी जमाली के पक्ष को सत्य मानकर भगवान महावीर के शासन के विरुद्ध प्रचार करना आरम्भ कर दिया। पिता से पुत्री कितनी दूर भटक गई थी। जमाली के बहुत से शिष्य और प्रियदर्शना की बहुत-सी शिष्याएँ, उनका विरोधी विचार और प्रचार देखकर भगवान् के शासन में चले गए थे। एक बार प्रियदर्शना ढंक कुम्भकार के यहाँ पर ठहरी। ढंक भगवान् महावीर का परम-भक्त और श्रद्धाशील श्रावक था। प्रियदर्शना ने उसे जमाली के विचार में लाने का प्रयत्न करते हुए कहा : "देवानुप्रिय, भगवान् का मार्ग ठीक नहीं है, जमाली का कथन सत्य है।" । परन्तु ढंग कुम्भकार भगवान् के धर्म में इतना अनुरक्त था कि उसके गले प्रियदर्शना की बात नहीं उतरी। ढंक ने प्रियदर्शना को समझाने का एक सुन्दर उपाय सोचा। जिस समय प्रियदर्शना की शिष्याएँ स्वाध्याय में निरत थी, उस समय ढंक ने एक अंगारा उनकी शाटी पर रख दिया, पता लगते ही प्रियदर्शना ने भर्त्सना के स्वर में कहा : "आर्य यह क्या करते हो? हमारी शाटी जल गई है।" ढंक ने विनम्र शब्दों में कहा : “पूज्या, आपके मत से आपकी वात ठीक नहीं है ! शाटी का अभी एक पल्ला ही जला है पूरी शाटी नहीं। फिर 'जल गई' यह वचन प्रयोग आपके मत के प्रतिकूल है।" बुद्धिमान को संकेत पर्याप्त होता है। अपने मिथ्या विचारों की आलोचना करके प्रियदर्शना ने फिर भगवान् का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003423
Book TitlePiyush Ghat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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