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६० : पीयूष घट
तुम्हारे लिए जल लेने जायेगा, वह भी उस समय तुम्हारे पास न होगा ।
अपना दुःखद भविष्य सुनकर या जानकर किसको चिन्ता न होगी ? कृष्ण चिन्तातुर हो गए। उनको गहरे चिन्तन में देखकर भगवान् नेमिनाथ ने आशा का संवल देते हुए कहा :
"कृष्ण ! तुम इतनी चिन्ता क्यों करते हो ? तुम्हारा अगला जीवन सुखद और सुन्दर है ।"
"यह कैसे भंते !" कृष्ण ने उत्कण्ठा से पूछा ।
"कृष्ण ! शतद्वार नगर में एक अन्तिम तीर्थकर होगा । वह तुम ही हो ।" भगवान् ने कहा ।
अपना उज्ज्वल भविष्य सुनकर कृष्ण हर्ष-विभोर हो गए । प्रमोदमय अभिनय करने लगे । अपनी पूरी शक्ति से उन्होंने सिंहनाद किया । फिर भगवान् को वन्दन करके द्वारिका की ओर चल पड़े । कृष्ण ने जो आज पाया, वह कभी नहीं पाया होगा ।
-- अन्तकृत् अंग-सूत्र, वर्ग ५ अ० १/
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