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________________ जो आज पाया था! भास्कर का भास्वर प्रकाश ज्यों ही धरातल का संस्पर्श करता है, त्यों ही मुकुलित कमल खिल उठते हैं। नभोमण्डल में जब कारे कजरारे मेघों का गम्भीर गर्जन होता है, तब मयूर अपनी कुहुक रोक नहीं सकता है। महापुरुष के पधारने पर भक्त अपने घरों में कैसे बन्द रह सकता है ? उसका मन अपने आराध्य के चरणों में लोट जाने को अधीर हो उठता है। भगवान् नेमिनाथ द्वारिका नगरी के बाहर उपवन में विराजित हुए। श्रीकृष्ण और महारानी पद्मावती वन्दन करने और धर्म-देशना सुनने के लिए आए । भगवान् की मधुर वाणी के अमृत-पान से परितप्ति का सुखद अनुभव विरले ही भाग्यवानों को मिलता है। पद्मावती वापस लौट गई। परन्तु श्रीकृष्ण वहीं बैठे रहे । भगवान् से पूछने लगे : "भंते ! देवलोक के तुल्य इस सुन्दर नगरी द्वारिका का विनाश किसी निमित्त से होने वाला तो नहीं है ?" श्रीकृष्ण, यादव कुमारों को सुरा एवं सुन्दरी के विलास से सशंकित हो हो चुके थे। समझाने-बुझाने के समस्त प्रयत्न निष्फल हो चुके थे। तीर्थंकर महावीर, श्रीकृष्ण के मन की शंका को जान गए थे। भगवान् बोले : “कृष्ण ! संसार में एक भी वस्तु शाश्वत नहीं है, आत्मा को छोड़कर ! द्वारिका नगरी का विनाश होने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003423
Book TitlePiyush Ghat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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