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५२ : पीयूष घट
तीनों ने कहा : " बात क्या है ? यह सब तो वन विहार का पुरस्कार है । रात्रि में पिशाच से 'युद्ध किया था, तभी तो बच गए - हम सब ?"
कृष्ण ने मुस्कान भरकर कहा : "बन्धुओ, युद्ध तो पिशाच से मैंने भी किया था, पर मैं घायल नहीं हुआ। वह स्वयं ही घायल हुआ पड़ा है ।"
तीनों ने देखा तो वस्तुतः कुछ दूरी पर घायल पिशाच भूमि पर अचेत पड़ा था । तीनों विस्मय के साथ बोले : "यह क्या बात है ?"
" बात कुछ भी नहीं है ! पिशाच के साथ लड़ने की एक कला होती है । वह तुम्हारे पास नहीं थी । मैं पिशाच से लड़ा नहीं, शान्त भाव से खड़ा रहा। वह उछल-कूद मचाता रहा । मैं उसके बल की प्रशंसा करता रहा । प्रशंसा का शस्त्र शत्रु के क्रोध को जीतने का अचूक साधन है । ! क्रोध को जीतने के लिए शान्ति की तलवार चाहिए ।" कृष्ण ने कहा ।
उ० अ० २, गा० ३१/
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