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________________ आलोचक ___ एक बार ब्रह्मा अपार जल राशि के मध्य कमलासन पर बैठे थे। शून्य में बैठे-बैठे उन्हें अपना एकत्व अखरने लगा। सोचने लगे-~-"संसार की रचना करू, तो कैसा रहे ? संसार एक ऐसा संसार, जिसमें कीड़ी से कुजर तक के पशु हों, मच्छर से गरुढ़ तक के पक्षी हों, वानर से नर तक के मनुष्य हों, और ....... ! और क्या हो ? सुख-समृद्धि से पूर्ण स्वर्ग तथा क्लेशसन्ताप से पूर्ण नरक ! जिससे कि स्वर्ग के लोभ से और नरक के भय से मेरी प्रजा पाप न कर सके।" "मैं संसार-रचना का प्रयत्न कर रहा हूँ ? पर, मेरी कृति अच्छी है, अथवा बुरो, इसको परीक्षा कौन करेगा? उसके गुण दोषों की मीमांसा कौन करेगा?" यह प्रश्न ब्रह्मा से संसार रचना से पूर्व ही समाधान माँगता था। ब्रह्मा ने बहुत-कुछ सोच विचार कर, निर्णय किया- "सर्व प्रथम एक टीकाकार अथवा आलोचक रचू', जो मेरी कृतियों में गण दोषों की मीमांसा कर उन्हें उपयोगी सिद्ध कर सके । अन्यथा मेरी सृष्टि-कृति सुन्दर न बन सकेगी।" __ ब्रह्मा ने एक समर्थ टीकाकार की रचना कर उससे कहा'देखो, जो कुछ भी मैं रचू, उसकी जाँच-पड़ताल तुम करते रहना, मेरी कृतियों के गुण-दोषों की सूचना मुझे देते रहना। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003423
Book TitlePiyush Ghat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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