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________________ बृहस्पति दत्त मनुष्य सुख, शान्ति और समृद्धि की मधुर कल्पना करता है, अपने लिए | परन्तु वह अपने सुख का भव्य प्रासाद दूसरों को लाश पर खड़ा करता चाहता है । यह उसकी भ्रान्ति है । सर्वभद्र नगर में जितशत्रु राजा राज्य करता था । महेश्वर दत्त उसका पुरोहित था । राज्य की वृद्धि के लिए और राजा की शान्ति के लिए वह यज्ञ किया करता था, जिसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों के बालकों के हृदय का मांस लेकर अग्नि में होमता था । वह क्रूर था, क्रूर कर्मा था । मर कर वह वहाँ से नरक में गया । वहाँ से वेदना भोगकर वह राजा शतनिक शाशित कौशाम्बी नगरी में पुरोहित सोमदत्त की पत्नी वसुदत्ता के पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ । नाम रखा बृहस्पति दत्त | राजा के एक राजकुमार था, उदायत । दोनों परस्पर मित्र थे, सहचर थे। एक-दूसरे के स्नेही साथी थे । बृहस्पति दत्त राजभवन में भी जाता था । उदायन राजा के पद्मावती रानी थी । वह सुन्दरी और रूपवती थी। एक बार उदायन ने बृहस्पति को अपनी रानी के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003423
Book TitlePiyush Ghat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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