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* १५२ : पीयूष घट
कालान्तर में, आचार्य रोहगुप्त को कृतिका वणिक् की दुकान पर ले गए। वहाँ स्वर्ग, पाताल और मध्यलोक में जो भी वस्तुएँ हैं, सब मिलती थीं। आचार्य ने वहाँ पहुँचकर 'नो जीव, नो अजीब वस्तु माँगी ।'
वणिक् ने कहा - " यह वस्तु तो तीनों लोक में से किसी भी लोक में नहीं है। फिर मिलेगी कहाँ से ?"
आचार्य ने रोहगुप्त से कहा - " वत्स ! अपना आग्रह छोड़ दो। अपने मिथ्या विचार की आलोचना करके शुद्धि कर ले ।"
परन्तु रोह किसी भी प्रकार माना नहीं । अन्त में आचार्य ने रोहगुप्त को गच्छ से बाहर कर दिया । सिद्धान्त का अपलाप करने से वह रोहगुप्त निन्हव हो गया ।
- उ० अ० ३, नि० गा० १७२ /
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