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नारी नर से आगे!
विदेह देश की राजधानी मिथिला नगरी में, कुम्भराजा राज्य करता था। प्रभावती उसकी रानी थो। मल्लदिन्न राजकुमार था, और मल्ली राजकुमारी थी। राजकुमारी मल्ली का रूप, लावण्य और सौन्दर्य अद्भुत था। देव उसके रूप से ईर्ष्या करते थे। राजकुमारी ने अपने सुन्दर संस्कारों के कारण आजीवन कौमार्य व्रत का संकल्प कर लिया था । ब्रह्मचर्य की साधना में वह सदा सजग रहती थी।
उस समय कोशल के प्रतिबुद्ध राजा ने, अंग के चन्द्रछाय राजा ने, काशी के शंख राजा ने, कुणाल के रूपी राजा ने, कुरु के अदीन शत्र राजा ने और पंचाल के जितशत्रु राजा ने राज कुमारी मल्ली के रूप, लावण्य और सौन्दर्य की कथा सुनी तो वे उसे प्राप्त करने के लिए विकल हो उठे। सब ने अपना-अपना सन्देश राजा कुम्भ के पास भेजा। राजा कम्भ ने सबको इन्कार कर दिया, क्योंकि राजा को यह विश्वास था कि मल्ली विवाह करने को तैयार नहीं है।
स्वार्थान्ध पुरुष नारी के भावों का मूल्यांकन नहीं कर सकता। वह तो न्याय और अन्याय से अपना स्वार्थ साधना हो चाहता है। राजाओं ने रूप सुन्दरी मल्ली को प्राप्त करने के लिए कुम्भ पर आक्रमण कर दिया । कुम्भ में इतनो शक्ति नहीं थी, कि वह सबसे टक्कर ले सके । युद्ध हुआ, राजा कुम्भ
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