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________________ विजय चोर बात यह उस समय की है, जब मगध देश की राजधानो राजगृह में राजा श्रेणिक राज्य करता था। श्रेणिक के राज्य में जहाँ सज्जन प्रजाजन थे-वहाँ कर, कठोर और कटु-स्वभाव का विजय चोर भी था। नगर के लोग सदा इससे सावधान रहते थे । क्योंकि वे इसकी क्रूरता से परिचित थे। अनेकों बार इसे पकड़ने का प्रयत्न भी हुआ, परन्तु वह मालुका कच्छ में छुपा रहता, और अवसर पाकर कभी लूट-खसोट कर भागकर फिर छुप जाता । क्रूर प्रकृति का मनुष्य स्वयं भी भयभीत रहता है। राजगृह में ही धन्य सार्थवाह नाम वाला एक प्रसिद्ध व्यापारी भी रहता था। भद्रा उसकी सेठानी थी। पन्थक नाम का एक उसके यहाँ दास था। सार्थवाह के पास विपुल धन और अपार वैभव था। परन्तु उसके घर में यदि कोई कमो थी, तो मात्र यही, कि उसके घर का दीपक कोई पुत्र या पुत्री नहीं था ! इसकी दोनों को सदा चिन्ता लगी रहती थी। कालान्तर में धन्य और भद्रा की यह भावना भी पूरी हुई। माता की सूनी गोद को पुत्र जन्म ने भर दिया। नाम रखा, देवदत्त । बड़ी साध के बाद देवदत्त मिला था । अतः उसका बड़े लाड़-प्यार से लालन-पालन होने लगा। पन्थक दास सदा उसको सेवा में तत्पर रहता । सदा छाया की तरह देवदत्त के साथ रहता था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003423
Book TitlePiyush Ghat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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