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________________ १३८ : पीयूष घट कुछ समय बाद रोहिणेय राजगृह में चोरी करता हुआ पकड़ा गया। परन्तु राजा के कर्मचारियों को यह नहीं मालूम हो सका कि वह रोहिणेय है या अन्य कोई ? उन्होंने उसे पोटना भारम्भ कर दिया और कहा कि सच-सच बता तू कौन है ? नीतिशास्त्र के अनेक पण्डित वहाँ आए, परन्तु कोई कुछ पता न लगा सका। ___ अन्त में जब कोई उपाय न रहा, तो चोर को खूब मद्यपान कराकर उसे बेहोश कर दिया गया, और एक अत्यन्त सून्दर भवन बनाकर, उसे बहुमूल्य गह-तकियों आदि से सजाकर चोर को वहाँ सुला दिया गया। - प्रातःकाल होने पर चोर ने देखा कि वह अत्यन्त सुन्दर भवन में लेटा हुआ है। नाना मणियों से जटित वह भवन जगमग-जगमग कर रहा है। उसका शरीर बहमुल्य वस्त्र और आभूषणों से अलंकृत है । सुन्दरी युवतियों का नाच-गान हो रहा है। नाच-गान के पश्चात् युवतियों ने चोर को प्रणामपूर्वक कहा "देव, आप बड़े भाग्यशाली हैं, जो आप इस देवलोक में जन्मे हैं । कृपाकर अपने पूर्वभव का वर्णन कीजिए । इस देवलोक का नियम है, कि जो अपने पूर्वभव का वर्णन करता है, वह अधिक समय तक देवलोक में वास करता है, अन्यथा वह यहाँ से शीघ्र ही च्युत हो जाता है।" ये बातें सुनकर रोहिणेय को तुरन्त भगवान् महावीर के वाक्य स्मरण हो आए-"देवलोक में देवताओं की मालाएँ मुरझाती नहीं, उनके पलक लगते नहीं, तथा वे अधर चलते हैं।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003423
Book TitlePiyush Ghat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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