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१२६ : पीयूष घट
गए । दासी सगर्भा हुई। दोनों चिन्ता के सागर में डूब गए । कपिल घबरा गया । नारी स्थिति को संभालने में दक्ष होती है । बोली : " अब चिन्ता करने से क्या ? आप पति और मैं पत्नी ! दोनों को मिलकर गृहस्थ जीवन की गाड़ी खींचनी है ।" और दासी कपिल के साथ सुखमय जीवन जीने के मोठे-मीठे स्वप्न देखने लगी ! पर अपना दास्य जीवन और कपिल की निर्धनता भी उसके सामने थी अतः एक क्षण रुक कर फिर विनम्र शब्दों में कपिल से कहा : "प्रियतम यहां पर धनदत्त सेठ है । उसके घर जो ब्राह्मण सबसे पहले पहुँचकर दर्शन देता है, वह उसे दो माशा सोना देता है । तुम सबसे हो पहले पहुँच जाओ तो तुम्हें मिल जायगा ।"
कपिल मध्य रात्रि में हो उठकर चल पड़ा सेठ के घर | चोर समझकर उसे पकड़ लिया गया और प्रातः राजा की सभा में उपस्थित किया गया । कपिल ने राजा को आप बीती कह दी । सत्य छुपा नहीं रह सकता । सन्तुष्ट होकर राजा ने कहा "अच्छा जो चाहो, माँग लो !"
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कपिल अशोक वाटिका में विचार करने लगा : क्या माँगू ? दो माशा से क्या होगा ? हजार, लाख, करोड़ माशों से भी क्या होगा ? राज्य ही क्यों न मांग लूँ ?”
वृक्ष से एक जीर्ण पत्र को पड़ते कपिल ने देखा । जीवन की दिशा बदलने को यह एक संकेत था । अपने जीवन की एक रेखा, कपिल के मानस पर खिच गई। विश्वास बदल गया, जीवन की पगडंडी ही जाति-स्मरण ज्ञान हो गया !
विचार बदल गया, बदल गई । '
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