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________________ भूला राही राह पर! यादव जाति के तरुण सूरा और सुन्दरी में आकण्ठ डूब गये थे अपना मान भूल गए थे। मांस को उन्होंने विशिष्ट भोजन मान लिया था। राजकुमार नेमि का विवाह था । बारात के स्वागत में माँस भोजन का आयोजन था। मग शशे, कुकुट्ट आदि असहाय पशुओं की चीत्कारों ने नेमि के हृदय में करुणा का तीव्र आन्दोलन उत्पन्न कर दिया। राजकुमार नेमि ने दया द्रवित हो राजकुमारी राजमती का परित्याग कर अपने जाति बन्धुओं के समक्ष एक महान् आदर्श उपस्थित किया। नेमि के प्रबजित हो जाने पर रथनेमि ने राजमती से विवाह करने की इच्छा अभिव्यक्त की थी। राजमती ने सोचा ! एक को हृदय समर्पित कर चुकी। अब दूसरी जगह कैसे दिया जा सकता है ? हृदय तो एक ही है और वह मैंने नेमि को दे दिया राजुल बुद्धिमती थी। रथनेमि का वासना वेग शान्त करने का एक उपाय खोज निकाला । एक दिन उसने विभिन्न प्रकार के खाद्यान्न खाए, और नाना प्रकार के पेय पदार्थ पिए । रथ नेमि के आगमन के साथ ही मदन फल खाकर उसने वमन कर दिया। रथनेमि इस नाटक को समझ नहीं सका। राजमती ने वान्त पात्र को रथनेमि के समक्ष रखकर विनीत भाव से कहा: "लीजीए, पान कीजिए, इसका !" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003423
Book TitlePiyush Ghat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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