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________________ ११० : पीयूष घट "आत्मा में अनन्त बल है, वत्स ! वह क्या नहीं कर सकता है ?" भगवान् ने धीर स्वर में सम्पूर्ण घटना कह दी। कृष्ण विह्वल होकर बोला : “भते, वह अनार्य कौन है ? कहाँ रहता है? इतना साहस उसका?" कृष्ण रोष की भाषा में बोल उठा! ___ "कृष्ण ! तुम उसे नगर में प्रवेश करते ही देख सकोगे। अधीर मत बनो, वत्स !" भगवान ने कहा। नगर जनों से सोमिल ने जब यह सुना कि कृष्ण, भगवान् नेमि को वन्दन करने गए हैं, तो अन्दर-ही-अन्दर एक महा भयानक प्रश्न कोंध गया : "वहाँ वे मेरे पाप को जान लेंगे।" सोमिल, भयाक्रान्त होकर वन की ओर भागा जा रहा था, उधर से खिन्न, उदासीन और क्रुद्ध कृष्ण हाथी पर बैठ नगर की ओर आ रहा था। सोमिल ने दूर से कृष्ण के हाथी को देखा तो भयातुर हो, पछाड़ खाकर गिर पड़ा और मर गया !! ___कृष्ण ने सोचा : “यही है, वह दुष्ट कर्म करने वाला पापी !" उसके शव को नगर के बाहर फिकवा दिया गया। एक दिन द्वारिका महानगरी के घर-घर में गजसुकुमाल के रूप, यौवन और सौन्दर्य की चर्चा थी, और आज नगर के नरनारी गजसुकुमाल की क्षमा की चर्चा कर करके दाँतों तले अंगुली दबा रहे थे। श्रद्धा, भक्ति और आदर से वन्दन कर रहे थे। गज सुकुमाल मोम से इस्तपात बन गया, कुसुम से कुलिश बन गया, फूलों से हटकर शूलों पर चलते हुए भी अपनी मस्ती में मस्त रहा। सोमिल के क्रूर क्रोध पर गजसकुमाल के करुण भाव, क्षमा के गीत बन-द्वारिका के कण-कण में बिखर गये थे। अन्त कृ० २० वर्ग ३, अ०८. Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003423
Book TitlePiyush Ghat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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