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________________ संन्यासी का द्वन्द : १०७ और कृष्ण ने गजसुकुमाल से छिपे-छिपे भगवान के दर्शन को जाने की तैयारी की। परन्तु गजसुकुमाल के सजग कानों ने वह सुन लिया, जिसे न सुनने देने का आयोजन किया गया था। उसकी चतुर आँखों ने वह देख लिया-जिसे गोप्य रखने का प्रवल प्रयत्न किया गया था। ठीक समय पर, गजसुकुमाल, कृष्ण के पास हो हाथी पर जा बैठा। सजग मनष्य कभी प्रमाद नहीं करता। जिस राजमार्ग से कृष्ण की सवारी जा रही थी, उसके समीप ही एक सुन्दर, सुकोमल वाला अपनी सहेलियों के साथ कन्दुक खेल रही थी। द्वारिकावासी सोमिल ब्राह्मण की पुत्री सोमा अपने खेल में लीन थी। उसे किसी के आने-जाने का भान नहीं था। परन्तु कृष्ण की दृष्टि सोमा की सुषमा पर टिक गई। गजसूकमाल के साथ इसका विवाह करेंगे। यही भावना लेकर कृष्ण ने सोमिल से सोमा की मांग की। उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया। "रत्नं समागच्छतु कांचनेन ।" भगवान् के दर्शन, वन्दन और उपदेश सुनकर कृष्ण लौटे। साथ ही गजसुकुमाल भी लौटा, परन्तु कुछ और रूप में, कुछ और ही धुन में ! गया था, वैभव और विलास के साथ, पर लौटा तो त्याग और वैराग्य की ज्योति के साथ ! गजसुकुमाल ने आते ही अपनी प्रवज्या का प्रस्ताव रख दिया। देवकी और वसुदेव का वात्सल्य, कृष्ण का स्नेह और भावजों का मधुर हास-विलास-ये सब मिलकर भी गजसुकुमाल को रोक नहीं सके क्योंकि त्याग के प्रशस्थ पथ पर अग्रसर होने के लिए उसका मन मचल रहा था ! एक तरुण तपस्वी, जिसने आज ही त्याग पथ पर अपना फौलादी कदम रखा था, वह आज ही जीवन की चरम कोटि को छु लेने की कोशिश में लग गया ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003423
Book TitlePiyush Ghat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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