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संन्यासी का द्वन्द : १०३.
शासन का भार शुक पर छोड़ दिया और स्वयं पुण्डरीक पर्वत पर चले गए। शेष जीवन वहीं पर व्यतीत किया और अन्त में सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गए। ___अणगार शुक, विहार करते-करते सेलकपुर पधारे। वहाँ सुभूमि भाग उद्यान में विराजित हुए । सेलकपुर के राजा ने अपने राज्य का भार अपने पुत्र मण्डूक को दिया और स्वयं अपने ५०० मन्त्रियों के साथ प्रजित हो गया। गुरु के पास अध्ययन और तपस्या करके सेलक अणगार भी विहार करतेकरते एक बार सेलकपुर में पधारे। मण्डूक ने खूब भक्ति की और रुग्ण दशा देखने योग्य वैद्यों से चिकित्सा कराई। सेलक अपने श्रमणत्व भाव को भूल गया और सुख-सुविधा में मस्त हो गया। दूसरे सभी शिष्य अपने सेलक गुरु को छोड़ गये । सेवा में केवल एक पन्थक ही रह गया। सम्पूर्ण वर्षावास बीत गया। कार्तिक की पूर्णिमा थी। पन्थक ने प्रतिक्रमण किया और अन्त में गुरु से भी क्षमा-याचना की। सेलक का प्रसुप्त मन सजग हो गया। वह कुशील से फिर सुशील हो गया। अन्त में पुण्डरीक पर्वत पर अपना शेष जीवन व्यतीत किया, और थावच्चा की तरह सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हुए।
-ज्ञाता अ०५/०
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