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________________ अस्तेय दर्शन / ४५ चाहिए-प्रेरणा बनी रहेगी और इस प्रकार सहर्ष कर्त्तव्य का पालन होता रहेगा, तो मैं समझता हूँ, आनन्द की उपलब्धि भी बराबर होती रहेगी। प्रश्न हो सकता है, जिस धर्म की साधना करते हुए भी यदि जीवन आनन्द-विहीन बना रहता है, वह धर्म क्या है ? मैं कहता हूँ, धर्म कोई पंथ नहीं है। किसी सम्प्रदाय का छापा, तिलक या और जो रूप-रंग होता है, वह भी धर्म नहीं है। वे साधन होते हैं अवश्य, किन्तु उन क्रियाकाण्डों के पीछे धर्म की सच्ची भावना आनी चाहिए। अर्थात् अहिंसा, सत्य, अस्तेय, इन्द्रियनिग्रह और तप-त्याग आना चाहिए। ___ वास्तव में धर्म का कोई वाह्य चिन्ह नहीं है। अगर अहिंसा आदि हैं तो जैनधर्म मान लेता है कि धर्म है। और पंथ के क्रियाकाण्ड तो हैं मगर धर्म के पवित्र संस्कार नहीं हैं, तो वह धर्म नहीं है। जैनधर्म कहता है कि यदि अहिंसा और सत्य के ऊँचे संस्कार हैं, क्रियाकाण्ड भी साधना के रूप में किया जा रहा है तो वहाँ सोने में सुगन्ध है। वहीं धर्म का असली रूप पनपता है। जिस मनुष्य का मन धर्म में रहता है-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, तप, त्याग और वैराग्य में रमण करता रहता है, उसे क्या कमी है ? उसे क्या दुःख है ? वह निराश और हताश क्यों हो? ___ संसार के वैभव मिल रहे हैं या नहीं, संसार की निगाह में उठ रहा है या नहीं, तू यह क्यों देखता है ? साधक ! तू तो यही देख कि तू अपने जीवन में उठ रहा है या नहीं? यदि तू उठ रहा है तो देवता भी तेरे चरणों में सिर झुकाने को आएंगे और तेरे चरणों की धुल अपने मस्तक पर लगा कर अपने को पवित्र समझेंगे। समझा, तेरी ऊँचाई इतनी बड़ी ऊँचाई है। दूसरे लोगों ने मानव जीवन को इस रूप में समझा है या नहीं, किन्तु जैनों ने भी कहाँ समझा है ? देखते हैं-धर्म का मर्म एक तरफ उपेक्षित पड़ा है और मनुष्य इधर-उधर की दूसरी कसौटियाँ कल्पित करके उन पर जीवन की ऊँचाइयों की परख करता फिरता है। और जब ऐसा करता है तो जीवन की असली चीज नहीं मिल पाती है, जीवन का दुःख-द्वन्द्व समाप्त नहीं होता है। आनन्द श्रावक के पास धन बहुत था, फिर भगवान् महावीर से उसे कौन-सा धन मिला? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003418
Book TitleAsteya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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