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________________ २२ / अस्तेय दर्शन जनता के साथ है। करोड़ों आदमियों का भाग्य उसके साथ बँधा हुआ है। इस चोरी का ऊपर से पता नहीं लगता है, किन्तु राष्ट्रीय दृष्टि से और सामाजिक दृष्टि से वह घोर पाप है । पाप के भेद : कुछ पाप वैयक्तिक होते हैं, कुछ सामाजिक और कुछ राष्ट्रीय होते हैं। किन्तु खेद है कि लोग वैयक्तिक पाप को तो पाप समझ सकते हैं और समझते भी हैं, मगर • सामाजिक और राष्ट्रीय पाप उनकी समझ में ही नहीं आता। उसका कोई गुरुत्व ही वे महसूस नहीं करते। यह पतन की पराकाष्ठा है। जो पाप को पाप समझता है, वह किसी दिन उससे बच भी जायगा, मगर पाप को पाप न समझने वाले का रोग तो असाध्य समझना चाहिए । आज की विषम स्थिति देख कर किस सहृदय का हृदय आहत नहीं हो जाता ? एक ओर देहात की लड़कियों के पास तन ढाँकने को वस्त्र नहीं है, वह चिथड़ों से किसी प्रकार अपनी लाज बचाती हैं। उनके पास न खाने को रोटी है और न पहिनने को वस्त्र हैं। और दूसरी तरफ एक-एक व्यापारी के घर में दो-दो हजार धोती जोड़े छापा मारने पर पकड़े जाते हैं। इस प्रकार एक ओर लोभ-लालच और असीम संग्रह की भावना का नंगा नाच हो रहा है और दूसरी ओर लोग जीवन की अनिवार्य आवश्यक सामग्री से भी मुहताज हो रहे हैं। बंगाल के अकाल की हालत आपको मालूम होगी, वहाँ बालक और बूढ़े, मक्खियों और मच्छरों की तरह मर रहे थे और दो-दो रुपये में बच्चे बिक रहे थे। लाखों आदमी मौत के मुँह में चले गए। उस समय भी किसी किसी व्यापारी के गोदाम में हजारों मन चावलों के बोरे भरे पड़े थे। वह उन्हें बड़े यत्न से संभाले था कि कब भाव कुछ और ऊँचा चढ़े और तब इन्हें बेचूँ । इस हृदयहीनता, निर्दयता और कठोरता की कहीं हद है ? मुझे एक व्यापारी का पता है। उसने 'ब्लैक मार्केट' न करने का नियम लिया था। वह सूत का बड़ा व्यापारी था। वह तो सरकार द्वारा निश्चित दर पर ही सूत बेच रहा था, किन्तु उसी के यहाँ से ले जाकर लोगों ने ब्लैक करके कमाई की। लोग उस बडे व्यापारी से कहने लगे-तम मर्ख हो । तम्हारे अकेले से क्या होता है ? तम्हारी 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003418
Book TitleAsteya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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