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________________ १०४ / अस्तेय दर्शन ऐसी सनसनी खेज खबर नहीं होती, तो पढ़ने वाले कहते हैं कि "अरे आज तो कोई खास खबर ही नहीं है। मारो भी गोली अखबार को " मेरी समझ में विज्ञापन की यह पद्धति गलत है। इससे देश का उत्थान होने वाला नहीं है। अपराध और हिंसा को महत्त्व देने से हमारा दृष्टिकोण भी अपराधी बनता जाएगा। भारत एक विशाल राष्ट्र है। इतने बड़े देश में कुछ ऐसी घटनाओं का हो जाना कोई बड़ी बात नहीं और आज ही क्यों, ऐसी घटनाएँ कब नहीं होती थीं ? रामराज्य में भी घटनाएँ होती थीं, कृष्ण के युग में भी घटनाएँ होती थीं, किन्तु तब उनको इतना महत्त्व नहीं दिया जाता, विज्ञापन नहीं होता था, आज वे घटनाएँ अखबारों की सुर्खियों में आती हैं। परन्तु जीवन तो देवासुर संग्राम है। यहाँ रावण है तो राम भी तो है, कंस है तो कृष्ण भी तो है, बुरी घटना होती हैं, तो अच्छी घटनाएँ भी तो बहुत होती हैं, ईमानदारी और राष्ट्रप्रेम के उज्ज्वल उदाहरण भी तो सामने आते हैं, किन्तु वे सब अखबारों की तलछट में चले जाते हैं, और सुर्खियों में वे ही गलत घटनाएँ ही चमकती रहती हैं। मैं सोचता हूँ, गाँधीजी की राम राज्य की कल्पना को चरितार्थ करने के लिए सबसे पहले हमें मूल्यांकन की इस पद्धति को बदलना होगा। अपनी नजर को सही करना होगा। अपने व्यक्तित्व का मूल्य समझना होगा। वह धन या सत्ता से नहीं, किन्तु अपने आत्मबल एवं चरित्र से ही होगा और इसी आधार पर समूचे राष्ट्र का मूल्य आंकना होगा। राष्ट्रीय जीवन में संयम और चरित्र की प्रधानता स्थापित करनी होगी। तपोनिष्ठ बनना होगा । तप का अर्थ सिर्फ सहन करना ही नहीं, किन्तु सहिष्णुता, उदारता और श्रमनिष्ठा को महत्त्व देना है। प्रत्येक व्यक्ति में राष्ट्रीय चेतना जगेगी, राष्ट्रीय गौरव की अनुभूति होगी और राष्ट्र उनके गौरवशाली व्यक्तित्व से, उनके चरित्र और आत्मबल से समृद्ध होगा, तो फिर रामराज्य की कल्पना परियों के देश की कहानी नहीं, किन्तु इसी धरती का जीता-जागता चित्र होगा, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास Jain Education International For Private & Personal Use Only विचार गोष्ठी जैन भवन, आगरा मई, १९६८ www.jainelibrary.org
SR No.003418
Book TitleAsteya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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