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________________ अस्तेय दर्शन / ९५ जानते हैं कि उन दिनों किस प्रकार हिन्दू और मुसलमान भाई-भाई की तरह मातृभूमि के लिए जीवन दे रहे थे। उत्तर और दक्षिण मिटकर एक अखण्ड भारत हो रहा था। सब लोग एक साथ यातनाएँ झेलते थे, और अपने सुख-दुःख को राष्ट्रीय सुख-दुःख के साथ किस प्रकार एकाकार करके चल रहे थे। राष्ट्र के लिए अपमान, संकट, यंत्रणा और फाँसी के फंदे को भी हँसते-हँसते चूम लेते थे। मैं पूछता हूँ कि क्या आज वैसी यातना और यंत्रणा के प्रसंग आपके सामने हैं ? नहीं। बिल्कुल नहीं । जो हैं वे नगण्य और बहुत ही साधारण हैं ! फिर क्या बात हुई, कि जो व्यक्ति जेलों के सीखचों में भी हँसते रहते थे, वे आज अपने घरों में भी असंतुष्ट दीन-हीन, निराश और आक्रोश से भरे हुए हैं। असहिष्णुता की आग से जल रहे हैं ! क्या कारण है, कि जो राष्ट्र एकजुट होकर एक शक्ति-सम्पन्न विदेशी हुकुमत से अहिंसक लड़ाई लड़ सकता है, वह जीवन के साधारण प्रश्नों पर इस प्रकार टुकड़े-टुकड़े होता जा रहा है? रोता-विलखता जा रहा है। मेरी समझ में एक मात्र मुख्य कारण यही है कि आज भारतीय प्रजा में राष्ट्रीय स्वाभिमान् एवं राष्ट्रीय चेतना का अभाव हो गया है ? देश के नव-निर्माण के लिए समूचे राष्ट्र में वह पहले-सा संकल्प यदि पुनः जागृत हो उठे, वह राष्ट्रीय चेतना यदि राष्ट्र के मूर्छित हृदयों को पुनः प्रबुद्ध कर सके, तो फिर मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी नहीं, किन्तु आदर्शों का नाम महात्मा गाँधी होगा, फिर झोंपड़ी में भी मुस्कराते चेहरे मिलेंगे, अभावों की पीड़ा में भी श्रम की स्फूर्ति चमकती मिलेगी। आज जो व्यक्ति अपने सामाजिक एवं राष्ट्रीय उत्तरदायित्वों को स्वयं स्वीकार न करके फुटबाल की तरह दूसरों की ओर फेंक रहा है, वह फूलमाला की तरह हर्षोल्लास के साथ उनको अपने गले में डालेगा और अपने कर्तव्यों के प्रति प्रतिपद एवं प्रतिपल सचेष्ट होगा। आशापूर्ण भविष्य : मैं जीवन में निराशावादी नहीं हूँ। भारत के सुनहरे अतीत की भाँति सुनहरे भविष्य की तस्वीर भी मैं अपनी कल्पना की आँखों से देख रहा हूँ। देश में आज जो अनुशासनहीनता और विघटन की स्थिति पैदा हो गई है, आदर्शों के अवमूल्यन से मानव गड़बड़ा गया है, वह स्थिति बदलेगी । व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र के लिए संक्रान्ति काल में प्रायः अंधकार के कुछ क्षण आते हैं, अभाव के प्रसंग आते हैं, परन्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003418
Book TitleAsteya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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