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१४ | उपासक आनन्द
नित्य प्रति दूध देती ही होंगी, और उनके दूध का औसत यदि दो सेर भी समझ लिया जाए तो एक हजार मन दूध सुबह में इतना ही शाम को होता होगा। क्या आनन्द का छोटा-सा परिवार प्रतिदिन दो हजार मन दूध पी जाता होगा ? और इस प्रश्न के उत्तर में प्रत्येक आदमी कहेगा, नहीं, यह असम्भव है ।
फिर किस लिए आनन्द ने इतनी बड़ी गो-शाला बनाई थी ? आज के लोगों की जो मनोदशा है, उसे देखते हुए इस प्रश्न के उत्तर पर उन्हें शायद विश्वास ही न हो। जो लोग अपने माता-पिता का, उनकी वृद्धावस्था में, पालन-पोषण करना भी परेशानी समझते हैं, जो अपने घर की विधवा को खिलाना - पिलाना भी भार समझते हैं, और जो अपने सहोदर भाई की सन्तान का भी बोझ नहीं उठाना चाहते, उनके प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं करना चाहते, तो उन्हें किस प्रकार समझाया जाए, कि आनन्द चालीस हजार गायों के प्रति, उनके द्वारा गोमाता के प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन किया करता था । उसके अन्तःकरण में करुणा और दया की जो भावना थी, उसे सफल करने और उसे क्रियात्मक रूप देने का उसका यह तरीका कितना सुन्दर था । वास्तव में, आनन्द की दया का प्रवाह मानव जाति तक ही सीमित न रहकर पशुजगत तक बह गया था, और यह एक ऐसा तरीका था, कि जिसके द्वारा पशुओं की दया के रूप में मनुष्यों की दया अपने आप ही पल जाती थी । आखिर, उसके यहाँ दूध और दही की जो धाराएँ बहती थीं, उसका उपयोग तो नगर के छोटे-बड़े सभी मनुष्य करते होंगे। इस प्रकार आनन्द गोपालन करके पशुओं के प्रति भी और मनुष्यों के प्रति भी अपने कर्त्तव्य का पालन करता था ।
आनन्द की गो-शाला, गो-शाला ही नहीं, दया और करुणा का सबक सीखने के लिए एक पाठशाला थी । उस गो-शाला से आनन्द दया की भावना को पुष्ट किया
करता था ।
अगर अकेले आनन्द श्रावक के यहाँ ही इतनी बड़ी गायों की संख्या होती, तो कोई यह कल्पना भी कर सकता था, कि उसे गोपालन का शौक रहा होगा, और इससे दया एवं करुणा का कोई साक्षात सम्बन्ध नहीं है । किन्तु इस सूत्र में वर्णित सभी श्रावकों के यहाँ हम यही बात देखते हैं। किसी के यहाँ चालीस हजार गायें पाली जा रही थीं, तो किसी के यहाँ साठ हजार । किसी के यहाँ अस्सी हजार गायों का पालन किया जाता था। आनन्द और दूसरे श्रावक जब परिग्रह का परिमाण करते हैं, तब भी गायों की संख्या कम नहीं कर लेते, बल्कि उन्हें उतनी की उतनी ही रख छोड़ते हैं । यह सब बातें मिलकर तथ्यपूर्ण जिस बात की ओर संकेत करती हैं, वह है, एक मनुष्य का पशुओं के प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार ! हमें अपने अन्तःकरण की ज्योतिस्वरूपा दया को पालने के लिए अपने चारों ओर किस प्रकार का वातावरण बना लेना
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