SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०४ उपासक आनन्द न दुष्ट मित्रों की संगति करे। न अधम पुरुषों की संगति करे। अच्छे मित्रों की संगति करे, उत्तम पुरुषों की संगति करे । २९ कण्हं धम्मं विप्पहाय, सुक्कं भावेथ पण्डितो । ओका अनोकं आगम्म, विवेके यत्थ दूरमं ॥ पापकर्म को छोड़कर पण्डितजन शुभ कर्म करे। घर से बेघर होकर, दूर जाकर एकान्त सेवन करें। Jain Education International ३० गामे वा यदि वा रजे, निन्ने वा यदि वा थले । यत्थारहन्तो विहरन्ति, तं भूमिं रामणेय्यकं ॥ गाँव हो या जंगल, नीची भूमि हो या ऊँचा स्थल हो, जहाँ अर्हत् लोग विहार करते हैं, वही रमणीय भूमि है। ३१ रमणीयानि अरञ्जानि, यत्थ न रमते जनो । वीतरागा रमिस्सन्ति, न ते काम - गवेसिनो ॥ रमणीय वन जहाँ साधारण लोग रमण नहीं करते, वहाँ पर वीतराग रमण करते हैं, क्योंकि वह काम भोगों के पीछे, दौड़ने वाले नहीं होते । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003416
Book TitleUpasak Anand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy