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________________ IIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIII उपासक-प्रतिमाएँ IA उपासकदशांग में आनन्द श्रावक का वर्णन करते हुए बताया है, कि उसने भगवान् महावीर से पाँच अणु-व्रत व सात शिक्षा-व्रत रूप बारह प्रकार के गृहस्थधर्म को स्वीकार किया एवं घर में रहकर बारह व्रतों का पालन करते हुए चौदह वर्ष व्यतीत किए। पन्द्रहवें वर्ष के प्रारम्भ में उसे विचार आया कि मैंने जीवन का काफी हिस्सा गृहस्थ-जीवन में व्यतीत किया है। अब क्यों न गृहस्थी के झंझटों से मुक्त होकर श्रमण भगवान् महावीर से गृहीत धर्म-प्रज्ञप्ति स्वीकार कर अपना समय व्यतीत करूँ? ऐसा विचार कर उसने मित्रों आदि के समक्ष अपने ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब का सारा भार सौंपा एवं सबसे विदा लेकर पौषध-शाला में जाकर पौषध ग्रहण कर श्रमण भगवान् महावीर से ली हुई धर्म-प्रज्ञप्ति स्वीकार कर रहने लगा। उसने उपासक-प्रतिमाएँ अंगीकार की, एवं एक-एक करके ग्यारह प्रतिमाओं की आराधना की। अन्त में मारणान्तिक संल्लेखना स्वीकार कर भक्त-पान का प्रत्याख्यान कर समाधि-मरण प्राप्त किया एवं सौधर्म देव-लोक के सौधर्मावतंसक महाविमान के उत्तर-पूर्व में स्थित्त अरुण विमान में चार पल्योपम की स्थिति वाले देव के रूप में उत्पन्न हुआ। वहाँ की आयु पूर्णकर वह महाविदेह में मुक्त होगा। आनन्द के इस वर्णन में स्पष्ट उल्लेख है, कि उसने द्वादश श्रावक-व्रतों का पालन करते हुए जीवन के अन्तिम भाग में एकादश उपासक-प्रतिमाओं की भी आराधना की एवं संल्लेखना-पूर्वक मृत्यु प्राप्त की। ___ यहाँ प्रतिमा का अर्थ है प्रतिज्ञा-विशेष, व्रत-विशेष, तप-विशेष, अथवा अभिग्रह-विशेष। प्रतिमास्थित श्रावक श्रमणवत् व्रतविशेषों की आराधना करता है। कोशकार प्रतिमा शब्द के मूर्ति, प्रतिकृति, प्रतिबिम्ब, बिम्ब, छाया, प्रतिच्छाया आदि अर्थ देते हैं। चूँकि प्रतिमाओं की आराधना करने वाले श्रावक का जीवन श्रमण के सदृश होता है अर्थात् उसका जीवन एक प्रकार से श्रमण-जीवन की ही प्रतिकृति होता है। अत: उसके व्रतविशेषों को प्रतिमाएँ कहा जाता है। जिस प्रकार श्रावक के लिए श्रमण-जीवन की प्रतिकृति रूप एकादश उपासक-प्रतिमाओं का विधान किया गया है, उसी प्रकार श्रमण के लिए भी अपने से उच्च कोटि के साधक के जीवन की प्रतिकृति रूप द्वादश भिक्षु-प्रतिमाओं का विधान किया गया है। दशाश्रुतस्कन्ध में इन दोनों प्रकार की प्रतिमाओं—साधना-सोपानों का संक्षिप्त एवं सुव्यवस्थित वर्णन है। षष्ठ उद्देश में उपासक-प्रतिमाओं तथा सप्तम उद्देश में भिक्षु-प्रतिमाओं पर प्रकाश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003416
Book TitleUpasak Anand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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