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FI उपासक आनन्द आदि के दृष्टिकोण से भी वे कम उपयोगी नहीं हैं। यह सत्य ही है, कि जैनागमसाहित्य उस समय की एक व्यापक क्रान्तिकारी विचार-धारा का प्रतीक है। वास्तव में, जैनागम प्रतिपादित विचारों ने उस समय प्रत्येक क्षेत्र में अनेक मौलिक परम्पराओं को जन्म दिया है। जो सभी युगों में समान रूप से सभी के लिये उपयोगी सिद्ध हुई हैं।
यह उपासकदशांग-सूत्र द्वादशांगी का सातवां अङ्ग है। मगर इस अङ्ग में जिज्ञासुओं के लिए भी महत्त्वपूर्ण सामग्री विद्यमान है, यद्यपि इसका मुख्य प्रतिपाद्य विषय कतिपय उपासकों अर्थात् गृहस्थ-श्रवकों की दशाओं का वर्णन है। उपासक दशांग के कुल दस अध्ययन हैं और उनमें दस उपासकों की जीवन-चर्या का विवरण है। चम्पा नगरी का इतिहास : __ उस समय अङ्ग जनपद में ही नहीं, बल्कि समग्र भारतवर्ष में चम्पापुरी अत्यन्त प्रख्यात नगरी थी। उन दिनों अक्सर भारत के अधिकांश भाग का शासन-सूत्र वहीं से संचालित होता था। चम्पा नगरी अत्यन्त प्राचीन नगरियों में से एक है। तीर्थंकर वासुपूज्य की वह जन्मभूमि, साधना-भूमि और निर्वाणभूमि है। सोलह सतियों में सुप्रसिद्ध सुभद्रा सती भी चम्पा की ही रहने वाली थी। भगवान् महावीर के परम भक्त सम्राट कूणिक ने राजगृह से हटाकर चम्पा को ही अपनी राजधानी बनाया था। प्रख्यात शीलवती सुदर्शन सेठ यहीं के निवासी थे।
इस प्रकार चम्पा का राजनीतिक और सांस्कृतिक महत्त्व तो है ही, साहित्यिक महत्त्व भी कम नहीं है। शय्यंभव सूरि ने प्रसिद्ध दशवैकालिक सूत्र की रचना इसी नगरी में की थी। - चम्पा नगरी के नामोच्चारण के साथ इस प्रकार की न जाने कितनी ऐतिहासिक घटनाएँ हमारे मस्तिष्क में चित्रपट की भांति घूम जाती हैं ! वास्तव में, चम्पा नगरी ने भारतीय इतिहास के निर्माण में भी महत्त्वपूर्ण योग प्रदान किया है।
हजारों लाखों वर्ष पहले भी भारत की संस्कृति उच्चश्रेणी पर पहुँच चुकी थी, जैनागमों के वर्णन इस तथ्य की साक्षी हैं। प्रत्येक बड़े नगर के बाहर उस समय नाना प्रकार के वृक्षों, लताओं और पौधों से हरे-भरे अतिशय रमणीय उद्यान बनाए जाते थे। वे नागरिकों के आमोद-प्रमोद के स्थल होते थे, और उन दिनों चम्पानगरी के बाहर भी 'पूर्णभद्र' नामक एक उद्यान था।
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