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________________ १०० । उपासक आनन्द को हजारों वर्षों तक भी सुनाया जाए तो क्या होगा। इतने वर्षों से प्रवचन सुन रहे हैं, वर्षों पर वर्ष गुजर रहे हैं, किन्तु अभी तक जीवन में परिवर्तन नहीं आया है। इसीलिए जाँच कर रहा था, कि इनमें कहीं दिल भी है या नहीं। जहाँ हृदय है वहाँ ज्ञान भरा है । वहाँ छलाँग लगती रहेगी। सहृदय एक ही प्रवचन सुनता है, तो उसके जीवन में एक प्रवाह पैदा हो जाता है। सुधर्मा स्वामी जम्बूस्वामी से कह रहे हैं- आनन्द ने भगवान् की वाणी सुनी, और उस पर विचार किया, और उसका रोम-रोम हर्ष से पुलकित हो उठा। उसके मन में बिजलियाँ चमकने लगीं। हृदय प्रकाश से परिपूर्ण हो गया। सचमुच ऐसा श्रोता धन्य है, और उसका जीवन मङ्गलमय एवं कल्याणमय होगा । - Jain Education International For Private & Personal Use Only कुन्दन - भवन अजमेर २५-८-५० ब्यावर, www.jainelibrary.org
SR No.003416
Book TitleUpasak Anand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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