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________________ प्रस्तुत पुस्तक राष्ट्र सन्त उपाध्याय पूज्य गुरुदेव अमर मुनिजी के प्रवचनों की है। उपासक आनन्द अथवा श्रावक आनन्द महाश्रमण महावीर भगवान् का परम भक्त था। आनन्द भगवान महावीर के संपर्क में कैसे आया ? वह जैन कैसे बना? तीर्थंकर महावीर का उपदेश सनकर, उसने व्रत-ग्रहण कैसे किए ? उनका पालन कैसे किया ? जीवन के अन्त में साधना किस प्रकार की ? गणधर इन्द्रभूति का परिसंवाद कैसे हुआ? भोगवान् जीवन को छोड़कर त्यागवान् जीवन जीकर आनन्द ने क्या पाया ? इन सब बातों का रोचक वर्णन प्रस्तुत पुस्तक उपासक आनन्द में किया है। प्रवचन अत्यन्त उपयोगी एवं जीवन-स्पर्शी हैं। प्रस्तुत पुस्तक का प्रकाशन सन्मति ज्ञान पीठ आगरा की ओर से हो रहा है। इसके प्रकाशन में अर्थ सहयोग श्री आजाद कुमार जैन, कलकत्ता की ओर से और कमलेश कुमार जैन (कक्कू), भावनगर की ओर से दिया गया है। दोनों सहोदर बन्धुओं को बहुत-बहुत धन्यवाद है। दोनों बन्धु श्रीमान् स्व: शहजाद लाल तथा स्व. श्रीमती विद्याजी के सुपुत्र हैं। भविष्य में भी दोनों सत्कर्म में अपना सहयोग प्रदान करते रहेंगे। -विजय मुनि शास्त्री जैन भवन, लोहामंडी, आगरा १ जनवरी, १९९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003416
Book TitleUpasak Anand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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