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________________ ४४ | अपरिग्रह-दर्शन -गुरुजी। आप ठीक ही देखकर आए हैं। यह कोई असम्भव बात नहीं है। गुरुजी ने पूछा-असम्भव कैसे नहीं है ? तालाब है, तो किनारा भी होना चाहिए। बिना किनारे का तालाव कैसा ! चेला बोला-गुरुजी, और तालाबों के किनारे होते हैं, पर इच्छा का तालाब वह तालाब है, जिसका कहीं ओर-छोर नहीं, किनारा नहीं । तष्णा का तालाब तट-विहान होता है ।। गुरु ने सन्तोष के साथ कहा ---तुम ठीक बात पर पहुँच गए हो। तुमने वस्तुस्थिति को समझ लिया है। तो, मनुष्य का मन विश्व की समस्त सम्पनि पाने पर भी शान्त होने वाला नहीं है। इस सत्य का जीवन में हम किसी भी समय अनुभव कर सकते हैं। संसार में एक तरफ वे साधन हैं, जिनके लिए इच्छा पैदा होती है, और मनुष्य उस इन्छा की पूर्ति के लिए उन साधनों को ग्रहण कर लेता है। मगर उनसे इच्छा को ति नहीं होती, बल्कि और नवीन इच्छा उत्पन्न हो जाती है । नवीन इच्छाएँ उत्पन्न होती हैं. वह फिर नवीन साधनों को ग्रहण करता है। लेकिन फिर वही हाल होता है। फिर कोई नयी इच्छा उत्पन्न होती है, तो, इच्छाओं की पूर्ति करते जाना, इच्छाओं की आग को शान्त करना नहीं है -- इस तरीके से आग बुझती नहीं, बढ़ती ही जाती है । अतएव इच्छा पूर्ति का मार्ग कोई कारगर मार्ग नहीं है। यह धर्म का मार्ग नहीं है। यह तो संसार का मार्ग है और इससे शान्ति नहीं मिल सकती। इस विषय में जैनधर्म का मार्ग यह है, कि इच्छा की शान्ति धन से नहीं होगी। वस्तु प्राप्त करने से इच्छा शान्ति नहीं होगी। इच्छा की आग जब भड़कने लगे तो सन्तोष का जल उस पर छिड़किए, वह आग निश्चय ही शान्त हो जाएगी। आपके मन का दौड़ना रुक जायगा तो, आपकी इच्छाएँ भी सिमट कर उसके किसी कोने में समा जाएंगी। यही है, राज मार्ग इच्छाओं को मिटाने का। यह दृष्टि लेकर अगर जीवन में चलेंगे, तो अपरिग्रह का व्रत आपके ध्यान में आ जाएगा। वास्तव में अपरिग्रह का अर्थ भी यही है । मान लो, कोई सम्राट है, या सम्पत्तिशाली है, और वह अपने आपमें ऐच्छिक गरीबी धारण करता है, आगे के सभी साधन एवं सम्पत्ति-सम्पन्न होते हुए भी अपनी इच्छाओं पर अंकुश लगाता है, स्वयं में गरीबी के भाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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