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________________ ४२ / अपरिग्रह-दर्शन कपिल की विचारधारा पलट कर एकदम विरुद्ध दिशा में चली गई । उसने सोचा जहा लाहो तहा लोहो। लोभ नहीं था, वह आ गया और बढ़ गया। और बढ़ता ही जा रहा है। मुझे दो माशे सोने से मतलब था। मगर राजा ने अगर 'जो कुछ इच्छा हो मांग लो' कह दिया तो, इच्छा बलवती हो उठी, और वह राजा का सारा राज्य ही लेने को तैयार हो गई। धिक्कार है, ऐसी इच्छा को और धिक्कार है, ऐसे मन को, जिसमें विराम नहीं है, शान्ति नहीं है। यह इच्छा वह अग्नि है, जिसे शान्त करने के लिए ज्यों-ज्यों ईंधन डाला जाता है, त्यों-त्यों वह बढ़ती ही चली जाती है। ईधन डालने से आग बुझ नहीं सकती। उसे शान्त करने की विधि ईंधन न डालना हो है। घृत डालने से आग अधिक बढ़ती है, कमो घटतो नहीं है। पानी डालकर ही उसे बुझाया जा सकता है । तृष्णा को आग को लोम से नहीं, सन्तोष से हो मिटाया जाता है। इस प्रकार लोभ-वृत्ति को समूल नष्ट करने की विचारधारा आई तो, वह महान् पुरुष अपरिग्रह के मार्ग को ओर चला, और महर्षि कपिल के रूप में उसे आज सारा संसार जानता है। एक दिन महर्षि कपिल ने पांच सौ चोरों को देखा। उनके हाथ खून से भर रहे थे । उदारता शब्द को उन्होंने कभी सुना भो न था। उस महर्षि की वाणी के प्रकाश में वे पांच सौ चोर भी उनके शिष्य बन गए। और एक दिन उन्हीं महान् मुनियों की वह टोलो संसार को शान्ति का सन्देश देने लगी। चीन देश के एक राजा की बात है। सन्त कन्फ्युसियस थे। उनके पास एक राजा आया। उसने निवेदन किया- देश में चोरी बहुत हो रही है। मैं उसे रोकने के लिए बहुत कुछ कर चुका है, किन्तु वह बन्द नहीं हो रही है । कृपा करके ऐसा कोई उपाय बतलाइए कि वह बन्द हो जाए। सन्त कन्फ्यूसियस ने कहा-बास्तव में चोरी बन्द करवाना चाहते हो, तो तुम स्वयं चोरी करना बन्द कर दो। अपने लालच को अधिक मत बढ़ने दो। लालच के कारण ही तुम अपनी प्रजा को चूस-चस कर अपना खजाना भर रहे हो । किन्तु जिस दिन तुम अपने इस लालच को त्याग दोगे और जिस दिन तुम्हारे मन में से झठ, चोरी और छीना-झाटो की भावनाएं शान्त हो जाएंगी उसी दिन यह चोरियां भी बन्द हो जाएँगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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