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________________ १६ | अपरिग्रह-दर्शन अशान्ति का कारण है और समाज एवं देश की शान्ति को भी नष्ट करने वाली है। यह कहावत नितान्त सत्य है-"I ess coin, less care." संग्रह (धन) जितना कम होगा,उतनी ही कम चिन्ता होगी। दूसरे शब्दों में यह भी भी कह सकते हैं कि-"जिसके पास कम संग्रह होगा, उसके पास उतनी ही अधिक शान्ति होगी।" वस्तुतः वह सबसे बड़ा सम्पत्तिशाली है, जो थोड़ीसी पूजी-आवश्यक पदार्थों में ही सन्तुष्ट रहता है। क्योंकि उसे जड़ पदार्थों का नहीं, अनन्त शान्ति का अनुपम खजाना प्राप्त हो जाता है और शान्ति से बढ़कर दुनिया में कोई चीज नहीं है । प्रत्येक व्यक्ति शान्ति चाहता है। अतः उसके लिए यह आवश्यक है कि वह संग्रह-वृत्ति का त्याग करे। अपने जीवन को सीमित एवं सादा बनाए । श्रावव-गृहस्थ के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी इच्छाओं को सीमा से बाहर न जाने दें। वह प्रत्येक पदार्थ को ग्रहण करते समय अपने विवेक की आँख को खुला रखे । आसक्ति की भावना को अपने मन में न घसने दे । उसके लिए यह स्पष्ट है कि धन-धान्य, स्वर्ण, चांदी, जवाह रात, खेत, मकान, दुकान, बैलगाड़ी, घोड़ा, गाय, बैल, भैंस आदि किसी भी वस्तु को आवश्यव ता के बिना ग्रहण न करे। जो वस्तु अपने एवं अपने रिवारिक जीवन के लिए अनावश्यक है, उसका संग्रह करना परिग्रह है, आप है, और पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय अपराध है, अशान्ति का इल है । अतः श्रावक का यह प्रमुख कर्तव्य है कि वह इच्छा, आकांक्षा का रिमाण करे, आसक्ति एवं ममत्व-भावना का परित्याग करने का प्रयत्न करे और अपनी आवश्यकताओं को घटाने का प्रयत्न करे । इच्छा-परिमाण की भावना एवं तदनुरूप किया जाने वाला प्रयत्न अपरिग्रह है, धर्म है और मुक्ति का मार्ग है। . He is the richest who is content 1. He is the richest who is content with the least. --Socrates Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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