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१० । अपरिग्रह-दर्शन आनन्द की अनुभूति तब होती है, जबावह दया एवं निःस्वार्थ प्रेम से आप्लावित शब्दों का दूसरे के हित के लिए प्रयोग करता है या दूसरे को सुख पहुँचाने के लिए अपने स्वार्थ का, अपनी आकांक्षाओं का त्याग करता है।' वस्तुतः आनन्द पदार्थ को प्राप्त करने में नहीं, बल्कि उसका त्याग करने में है । और यही आनन्द का सही मार्ग है, और इसे हम अपरिग्रह भावना कहते हैं । यह भावना जब मर्त रूप लेती है, तो धरती पर ही स्वर्ग उतर आता है । यह संसार ही स्वर्ग बन जाता है और सम्पूर्ण विश्व में शान्ति का, सुख का, और आनन्द का सागर लहर-लहर कर लहराने लगता है।
More blessed to give than to receive.
-Bible
f.
You will find that the moment of supermost happiness were those in which you uttered some word of performed somo act of compassion or self-denying love.
-Ibid
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