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________________ १९८ | अपरिग्रह-दर्शन बुद्ध और महावोय ने समूचे संसार को धर्म का सन्देश दिया - याजनीति से अलग हटकर, यद्यपि वे जन्मजात राजा थे । गांधीजी ने नीतिमय जीवन का आदेश दिया, राजनीति में भी धर्म का शुभ प्रवेश कराया— यद्यपि गाँधोजी जन्म से राजा नहीं थे । यो गाँधीजी ने राजनीति में धर्म की अवतारणा की । गाँधीजी की भाषा में राजनीति वह जो धर्म से अनुप्राणित हो, धर्म-मूलक हो। जिस नीति में धर्म नहीं, वह राजनीति, कुनीति रहेगी। राजा की नोति धर्ममय होती है । क्योंकि भारतीय परम्परा में राजा भ्याय का विशुद्ध प्रतीक हैं । जहाँ न्याय वहाँ धर्म होता ही है । न्यायरहित नीति नहीं, अनोति है, अधर्म है । आज भारत स्वतन्त्र है, और स्वतन्त्र भारत की राजनीति का मूल आधार है - पंचशील सिद्धान्त । इस पंचशील सिद्धान्त के सबसे बड़े व्याख्याकार थे - भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू । भारत, चीन और रूस विश्व की सर्वतो महान् शक्तियाँ आज इस पंचशील सिद्धांत के आधार पर परस्पर मित्र बने हैं । गाँधी युग की या नेहरू युग की यह सबसे बड़ी देन है, ससार को। दुनिया की आधी से अधिक जनता पंचशील के पावन सिद्धान्त में अपना विश्वास हा नहीं रखती, बल्कि पालन भी करती है । यूरोप पर भो वारे-धारे पचशील का जादू फैल रहा है । राजनीतिक पंचशील : १. अखण्डता एक देश दूसरे देश को सीमा का अतिक्रमण न करे । उसकी स्वतन्त्रता पर आक्रमण न करे । इस प्रकार का दबाव न डाला जाए, जिससे उसको अखण्डता पर संकट उपस्थित हो । २. प्रभुसत्ता प्रत्येक राष्ट्र को अपना प्रभु-सत्ता है । उसकी स्वतन्त्रता में किसी प्रकार की बाधा बाहर से नहीं आनी चाहिए । ३. अहस्तक्षेप - किसी देश के आन्तरिक या बाह्य सम्बन्धों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए । ४. सह अस्तित्व - अपने से भिन्न सिद्धान्तों और मान्यताओं के कारण किसी देश का अस्तित्व समाप्त करके उस पर अपने सिद्धान्त और व्यवस्था लादने का प्रयत्न न किया जाए। सबको साथ जीने का, सम्मानपूर्वक जीवित रहने का अधिकार है । ५. सहयोग – एक दूसरे के विकास में सब सहयोग, सहकार की भावना रखें। एक के विकास में सबका विकास है । यह है राजनातिक पंचशील सिद्धान्त, जिसको आज विश्व में व्यापक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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