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इच्छाओं का वर्गीकरण | १७६
साधारण भोजन ही प्राप्त हो। अब यदि दृष्टि भोजन तक ही सीमित है, तो उसमें सन्तोष हो जाएगा और तृप्ति भी मिल जाएगी। और यह बात भगवान महावीर के उस दष्टिकोण से मेल खाती है, कि 'जीने के लिए भोजन है, भोजन के लिए जीना नहीं है।' भगवान् महावीर ने
"जवणट्ठाए भुजिज्जा।" जीवन-यात्रा को सुखपूर्वक चलाने के लिए ही भोजन करना चाहिए किन्तु इस बात में गड़बड़ी तब पैदा होती है, जब जीवन को महत्व न देकर, भोजन को अर्थात् भोग-विलास को महत्व दिया जाता है। जीवन के लिए भोजन तो चाहिए, वह आवश्यक है; किन्तु मिर्च-मसाले आदि से सम्बन्धित भोजन के जितने भी स्वाद-सम्बन्धी प्रकार हैं, वे सभी अनावश्यक हैं। उनके न होने से भी क्षधा की पूर्ति हो सकती है। ये सब मिच, मसाले और मिष्टान्न आदि क्ष धा पूर्ति के लिए नहीं, बल्कि जिह्वा के स्वाद की पूर्ति के लिए बनाए जाते हैं । जिह्वा के स्वाद की पूर्ति के लिए, यह सब उपक्रम होता है । एक प्रश्न और भी है, कि भोजन के विविध प्रकार तो जीभ के स्वाद की तृप्ति के लिए बनाए गए हैं; किन्तु ये मेज, कुर्सियाँ, चाँदी, सोने के बर्तन आदि तो जिह्वा के लिए भी आवश्यक नहीं हैं। यह सब साजमज्जाएं व्यर्थ ही मन के अहंकार के पोषण के लिए होती हैं । मनुष्य अधिकतर अपनी वास्तविक इच्छाओं को अवास्तविक एवं अनावश्यक इच्छाओं से पृथक नहीं कर पाता है। वह अपने अहंकार के संतोष के लिए अनेक प्रकार की सामग्री जुटाने का प्रयत्न करता है। यदि विश्लेषण करके देखा जाए, तो वास्तविक इच्छाएँ बहुत कम होती हैं। वे तो इतनी अल्प होती हैं, कि उनकी पूर्ति के लिए कोई विशेष परेशानी की जरूरत नहीं होती। अधिकांश कष्ट और परेशानियां तो अनावश्यक और प्रदर्शनकारी आकांक्षाओं के कारण ही उत्पन्न होती हैं । धन की पूजा या व्यक्ति की :
___एक दिन एक बहत ही धनी-मानी सज्जन दर्शनार्थ आए। बात-चीत के प्रसंग में एक विचार आया, कि आज मानव की पूजा उतनी नहीं होती, जितनी उसके अलंकार, धन, वैभव, वेषभूषा और पद की होती है। उसने कहा कि जब मैं एक साधारण गरीब आदमी था, मेरे पास धन
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