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________________ ११२ | अपरिग्रह-दर्शन तेज प्रज्वलित होगी । ठीक इसी प्रकार का विचार इच्छाओं की पूर्ति करके उन्हें शान्त करने का है । मनु-स्मृति में कहा है .. 'न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति । हविषा कृष्ण-वमव भूय एवाभिवर्धते ॥" अग्नि जैसे घी से अधिक प्रज्वलित होती है, वैसे ही कामनाओं की अग्नि भी पूर्ति के प्रयत्नों से और भी वेगवती होकर जलती है । आनन्द कहाँ है ? कभी-कभी सोचता हूँ, कि आखिर, आनन्द कहां है, किसमें है ? इच्छाओं की अतृप्ति में भी बैचेनी है, अशान्ति है और उनकी पूर्ति के प्रयत्न में भी कष्ट है। पूर्ण होने के बाद और भी कष्ट होता है.----जब एक के बाद दूसरी दस और नई इच्छाएँ पैदा हो जाती हैं। इस प्रकार जीवन में कभी इच्छाओं की पर्ण संतुष्टि का समय ही नहीं आता, और संतुष्टि न होने पर आनन्द भी नहीं मिल पाता। बड़े-बड़े चक्रवर्ती भी अन्त में हाय-हाय करते मर गए । सुभूमचक्रवर्ती, छह खण्डों का सम्राट ! फिर भी एक अतृप्त इच्छा, दबी हुई कामना उसे सातवां खण्ड साधने को प्रेरित करने लगी। जिस व्यक्ति को छह खण्ड के विशाल साम्राज्य से भी आनन्द प्राप्त नहीं हो सका, सन्तोष नहीं हो सका, उसे सातवें खण्ड में भी वह कहाँ मिल सकता था ? यदि उसके मन की भूख मिटाने को छह खण्ड का साम्राज्य समर्थ नहीं हुआ, तो सातवें खण्ड में ऐसा क्या है, जो भूख मिटा देगा । वास्तव में आकांक्षाएं लालसाएँ मनुष्य को परेशान करती हैं । भगवान् महावीर ने कहा है, कि ये आकांक्षाएं आकाश के समान अनन्त हैं .. ___ 'इच्छा हु आगास-समा अणन्तिया ।' यह आशा-तृष्णा एक ऐसी नारी है, जिसके अनन्त बच्चे जन्मे और खत्म हो गए, परन्तु यह खत्म नहीं हुई । जिस दिन इच्छा पर विजय प्राप्त कर ली जाएगी, उस दिन और ठीक उसी दिन, उसी घड़ी अन्त-जीवन में आनन्द का एक अक्षय स्रोत फट निकलेगा। जिसके शान्त-निर्मल प्रवाह में आत्मा को बह शान्ति प्राप्त होगी और वह आनन्द प्राप्त होगा, जिसका अन्तिम छोर कभी आएगा ही नहीं। भौतिक सुख के छोर होते हैं, आत्मिक आनन्द का कोई छोर नहीं होता। वह सदा शाश्वत है, अनन्त है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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