SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आसक्ति : परिग्रह | १०५ हुआ, कि उसे इसी चक्कर में फँसकर मर जाना पड़ा। उसने अपने परिवार को और साम्राज्य को भी धल में मिला लिया, और इस प्रकार अपने असन्तोष के कारण अपना सर्वनाश कर लिया । रावण की कहानी पौराणिक कहानी है, और बहुत पुरानी हो चुकी है, उसे जाने दीजिए । आधुनिक युग के एक वीर विजेता हिटलर की जीवनी को ही देखिए । हिटलर को या उसके देश जर्मनी को काई आबश्यकता नहीं थी, कि वह समग्र यूरोप पर अपना अधिकार करे, और ऐसा किए बिना वह जीवित न रह सकता हो । फिर भी उसने विजय के लिए अभियान किया, और एक-एक करके अनेक देशों को जीत लिया । मगर 'जहा लाहो तहा लोहो' अर्थात् ज्यों-ज्यों लाभ होता गया, त्यों-त्यों लोभ बढ़ता गया और असन्तोष बढ़ता गया, उसकी फौजें भी बढ़ती चली गयीं । आखिर, उसका असन्तोष उसे रूस में ले गया, और वहीं उसने उसका खात्मा कर दिया । अभिप्राय यह है, कि अनेक देशों को जीत लेने पर भी हिटलर अपनी लोभ-वृत्ति को नहीं जोत मका था। इसी से अन्दाजा लगा लीजिए, कि उसे जीतने के लिए कितने बड़े शौर्य की आवश्यकता है ? ऐसी स्थिति में यह कहना, नितान्त भ्रन पूर्ण है, कि सन्तोष नपुंसकों का शास्त्र है । वस्तुतः सन्तोष असाधारण वोरता का परिचायक है, और वही समष्टिगत और व्यष्टिगत जीवन का सुखमय बना सकता है । इस सन्तोष का आविर्भाव इच्छाओं पर विजय प्राप्त करने पर होता है, और इच्छाओं पर विजय प्राप्त करने के लिए आवश्यक है, कि उसकी प्रथम मंजिल इच्छा-परिमाण पर आप अपना सुदृढ़ कदम रखें । अगर आप अपने जीवन को सुखमय बनाना चाहते हैं, शान्तिपूर्ण और निराकुल बनाना चाहते हैं, तो आपके लिए एक ही मार्ग है- आप इच्छापरिमाण के पथ पर चलें। जो इस पथ पर चले हैं, उन्होंने अपना कल्याण किया है, और जो चलेंगे, वे भी अपना कल्याण करेंगे और दसरों का श्री । यही वीर प्रभु का पथ है । यहो वीतराग मार्ग है। यही तो साधना का पन्थ है | ब्यावर अजमेर २१--११-५० Jain Education International For Private & Personal Use Only ¤ www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy