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उपदेशामृत
विरम-विरम संगान्
मुच-मुच प्रपंचम् ।
।
विसृज विसृज मोहं
कुरु-कुरु
विद्धि-विद्धि स्व-तत्त्वम् ॥
कलय- कलय
वृत्तं
पश्य पश्य स्व-रूपम् ।
पुरुषार्थं निर्वासानन्द- हेतो:
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-आचार्य शुभचन्द्र
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