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आप तो मूल में शुद्ध, बुद्ध, पवित्र, परमात्मा हैं। जरा अपने ऊपर पड़ी हुई विकारों की राख को साफ कर दीजिए, फिर आप किस बात में तुच्छ और हीन हैं ? आत्म - वैभव से बढ़ कर अन्य कोई वैभव नहीं। आत्म - तेज से बढ़ कर अन्य कोई तेज नहीं ।
स्थित-प्रज्ञ
मैं अजर हूँ, अमर हूँ, अनन्त हूँ। मैं ईश्वर हूँ, खुदा हूँ, गॉड हूँ । न मेरा जन्म है और न मरण है ! मैं महाकाल की भुजाओं से बाहर हूँ। मेरा प्रकाश देश और काल की सीमाओं को समाप्त करने वाला है । मैं महाप्रकाश हूँ-असीम हूँ और अनन्त हूँ !
मैं सन्त हूँ, सच्चा सन्त । मैं दुःख - सुख के खिलौनों से खेलते समय एक जैसा अट्टहास करता हूँ । न मुझे सम्मान झुका सकता है और न अपमान, न सुख और न दुःख, न हानि और न लाभ, न जीवन और न मरण । मैंने जीवन और मृत्यु में समान सौन्दर्य देखने का जादू सीख लिया है। मैं स्थित - प्रज्ञ हूँ, अतः प्रत्येक स्थिति में एक-सा रहता हूँ।
मन की शुद्धि
मनुष्य का मन एक क्षेत्र है, और अच्छे - बुरे विचार उसमें बोये जाने वाले बीज हैं । जैसा बीज बोया जाएगा, वैसा ही तो फल भी होगा। यह नहीं हो सकता कि बीज तो वोए बबूल के और फल लगें आम के । अच्छा फल पाना है, तो अच्छाई के बीज बोने चाहिए । भगवान् महावीर ने कहा है- “सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णा फला हवन्ति, दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णा फला हवन्ति ।"
आप पूछते हैं पानी भरने वाले से कि डोल में पानी कैसा है ? उत्तर मिलता है—जैसा कुएँ में पानी है , वैसा ही डोल में है। यह
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अमर - वाणी
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