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झुकना है और न उधर, और न कहीं भी बीच में झुक कर खड़ा होना पड़ता है । ठीक लक्ष्य के सामने एक - एक कदम बढ़ाना है। सत्य के राही का एक ही नारा है- “चरैवेति, चरैवेति”- चले चलो, चले चलो!
सत्य और प्रिय सच्ची बात और है तथा चुभने वाली और । बात वह कहनी चाहिए, जो असर तो करे, पर सुनने वाले के हृदय को छेद न डाले।
व्यक्ति और सत्य इस व्यक्ति या उस व्यक्ति की ओर न लुढ़क कर सत्य की शरण स्वीकार करो। व्यक्ति जन्मता है, तो मरता भी है, परन्तु सत्य अजन्मा है, अजर और अमर है।
सत्यं, शिवम् जो सत्य है, वह बोलना चाहिए, यह ठीक नहीं है। अपितु, जो सत्य जनता का कल्याण करने वाला हो, शिव रूप हो, वह बोलना चाहिए, यह ठीक है।
अहिंसा __ अहिंसा वह अद्भुत शक्ति है, जिसके समक्ष भय, आशंका, अशान्ति, कलह, घृणा और पशुत्व आदि भाव पल-भर के लिए भी नहीं ठहर सकते। ___ अहिंसा मानवता की आधार-शिला है, मानवता का उज्ज्वल प्रतीक है। परिवार में, समाज में, राष्ट्र में यदि शान्ति का दर्शन करना हो, तो अहिंसा का मूल - मंत्र जपना ही होगा । अहिंसासाधना शरीर का हृदय - भाग है । वह यदि सक्रिय है, तो साधना जीवित है, अन्यथा मृत है।
सत्यं, शिवं, सुन्दरम् :
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