SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बिखरे मोती पूर्व और पश्चिम पूर्व और पश्चिम दोनों दो किनारों पर खड़े हुए हैं। पूर्व की संस्कृति मनुष्य को अन्तर्मुख बनाती है और पश्चिम की संस्कृति बहिर्मुख । पूर्व की संस्कृति का आधार आत्मा-निरीक्षण है, और पश्चिम की संस्कृति का आधार है प्रकृति-निरीक्षण ! पूर्व की संस्कृति का आराध्य है विराट् चैतन्य देव और पश्चिम की संस्कृति का आराध्य है क्षुद्र जड़ राक्षस ! पूर्व के हाथ में शीतल जल की सुराही है, तो पश्चिम के हाथ में जलती हुई लकड़ी। रूप नहीं, गुण देखिए रूप का क्या देखना, गुण देखिए । कुल का क्या देखना, शील देखिए । अध्ययन का क्या देखना, प्रतिभा का चमत्कार देखिए । भाषण का क्या देखना, आचरण देखिए । तप का क्या देखना, क्षमा एवं सहनशीलता देखिए। धर्म का क्या देखना, दया की भावना देखिए। बिखरे मोती: १५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003414
Book TitleAmar Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy