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________________ ब्रह्मचर्य ब्रह्मचर्य जीवन का अग्नि-तत्त्व है, तेज है। उसका प्रकाश, उसका प्रताप जीवन के लिए परम आवश्यक है। भौतिक और आध्यात्मिक, शारीरिक और मानसिक सभी प्रकार का स्वास्थ्य ब्रह्मचर्य पर अवलम्बित है। ब्रह्मचर्य का अभिप्राय शरीर की अन्तिम साररूप धातु, वीर्यरक्षा और पवित्रता ही नहीं है, वह मन, वाणी और शरीर-तीनों की पवित्रता है। ब्रह्मचर्य की साधना मन, वचन और कर्म से होनी चाहिए । मन में दूषित विचारों के रहने से भी ब्रह्मचर्य की पवित्रता क्षीण हो जाती है । बाहर में भोग का त्याग होने पर भी वह कभी-कभी अन्दर जा बैठता है। अतः अत्यन्त सावधान रहने की आवश्यकता है, ताकि बाहर छोड़ी हुई भोग-वस्तुएँ, कहीं अंदर न घुस जाएँ। अनुशासन एक कठोर एवं सदा जागृत रहने वाले पहरेदार के समान अपने प्रत्येक विचार, शब्द और कार्य पर कड़ी निगाह रखो । देखना, कहीं भूल न होने पाए ? अनुशासन जीवन का प्राण है। अपने छोटे-से-छोटे कार्य और व्यवहार पर कठोर नियन्त्रण रखो, अपना शासन चलाते रहो । कोमलता बनाम कठोरता अखिल विश्व की कोमलता ममता मन में इतनी ठसाठस भर गई है कि अपने प्रति कोमलता को कहीं जगह ही नहीं रही है। कोमल रूई भी जब अधिक दवाकर गाँठ बना दी जाती है, तो उसकी कोमलता विनष्ट हो कर. हो जाती है काठ-सी कठोरता। १२० अमर - वाणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003414
Book TitleAmar Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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