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सत्य की पवित्र साधना ही जिसके जीवन का प्रकाशमान इतिहास है। महामानव सत्य का वह प्रकाशमान स्तम्भ है, जो अपनी मृत्यु के बाद भी हजारों वर्षों तक अन्धेरे में भटकती हुई मानवता को प्रकाश देता रहता है । वह जनता का सर्वश्रेष्ठ कलाकार होता है।
अब जरा महादेव का आदर्श सुनिए --"सब लोग अमृत पीने की चिन्ता में हैं, किंतु मैं विष की पूंट पीकर अजर-अमर होना चाहता हूं। मुझे फूलों की शय्या नहीं, काँटों का पथ चाहिए ।
व्यक्ति तथा समाज के विकास में बाधक वे लोग होते हैं जिनमें दूसरों को अपने पीछे चलाने की शक्ति नहीं है और जो स्वयं दूसरे के पीछे चलना नहीं चाहते। आपका उनके लिए सन्देश है-"या तो स्वयं दूसरे के पीछे चलो अथवा दूसरों को अपने पीछे ले लो। दोनों में से एक बात करनी ही होगी।"
अवसर व्यक्ति को महान् नहीं बनाता; किन्तु व्यक्ति अवसर को महान बनाता है। पानी की बूंद को मोती बनाना सीप का काम है । दूसरे स्थान में पड़ी हुई वही बूंद शुद्ध बिन्दु के अतिरिक्त कुछ नहीं है । जिस क्षण को किसी तेजस्वी पुरुष ने पकड़ कर अपने जीवन का उन्मीलन मुहूर्त बना लिया, वही क्षण महान हो जाता है, अन्यथा वह काल की अनन्त-धारा का एक क्षुद्रतम अंश ही है। अवसर की प्रतीक्षा में बैठे रहने वाले अकर्मण्यों के सामने उपर्युक्त तत्त्व का मर्म रखते हुए वे लिखते हैं
साधारण मनुष्य अवसर की खोज में रहते हैं- कभी ऐसा अवसर मिले कि हम भी कुछ करके दिखाएँ। इस प्रकार प्रतीक्षा में सारा जीवन गुजर जाता है, परन्तु उन्हें अवसर ही नहीं मिलता।
परन्तु महापुरुष के पास अवसर स्वयं आते हैं । आते क्या हैं, वे छोटे-से-छोटे नगण्य अवसर को भी अपने काम में लाकर बड़ा
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