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________________ की भूली - भटकी, टेढ़ी - मेढ़ी पगडंडियों पर ही चक्कर काटता रहेगा ? नहीं, तू तो उस मंजिल का यात्री है, जहाँ पहुँचने के बाद आगे और चलना शेष ही नहीं रह जाता - "इस जीवन का लक्ष्य नहीं है, श्रान्ति-भवन में टिक रहना। किन्तु, पहुँचना उस सीमा तक, जिसके आगे राह नहीं ॥" महान संस्कृति आज सब ओर अपनी - अपनी संस्कृति और सभ्यता की सर्वश्रेष्ठता के जयघोष किए जा रहे हैं । मानव - संसार संस्कृतियों की मधुर कल्पनाओं में एक प्रकार से पागल हो उठा है । विभिन्न संस्कृति एवं सभ्यताओं में परस्पर रस्साकशी हो रही है। परन्तु, कौन संस्कृति श्रेष्ठ है, इसके लिए एकमात्र एक प्रश्न ही काफी है, यदि उसका उत्तर ईमानदारी से दे दिया जाए तो? वह प्रश्न है कि क्या आपकी संस्कृति में बहुजनहिताय, बहुजनसुखाय की मूल भावना विकसित हो रही है ? व्यक्ति स्वपोषण - वृत्ति से विश्वपोषण की मनोभूमिका पर उतर रहा है ? निराशा के अन्धकार में शुभाशा की किरणें जगमगाती आ रही हैं ? प्राणिमात्र के भौतिक एवं आध्यात्मिक जीवन के निम्न धरातल को ऊँचा उठाने के लिए कुछ-न-कुछ सत्प्रयत्न होता रहा है ? यदि आपके पास इन प्रश्नों का उत्तर सच्चे हृदय से 'हाँ' में है, तो आपकी संस्कृति निःसन्देह श्रेष्ठ है । वह स्वयं ही विश्व संस्कृति का गौरव प्राप्त करने के योग्य है । जिसके आदर्श विराट् एवं महान हों, जो जीवन के हर क्षेत्र में व्यापक एवं उदार दृष्किोण का समर्थन करती हो, जिसमें मानवता का ऊर्ध्वमुखी विकास अपनी चरम सीमा को सजीवता के साथ स्पर्श कर सकता हो. वही विश्वजनीन संस्कृति विश्व-संस्कृति के स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान हो सकती है। ८८ अमर-वाणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003414
Book TitleAmar Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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